Surajpur News: सूरजपुर जिले में वाद्य यंत्र बजाने के शौक ने कलाकार को वाद्य यंत्र निर्माता बना दिया है. ग्रामीण इलाके में रह कर बैंजो निर्माण करने वाले कलाकार भले ही प्रदेश में गुमनाम हैं लेकिन पडोसी राज्यों में मशहूर हैं. हालांकि दो कमरे के घर में रहकर परिवार का पालन पोषण करने वाले कलाकार को छत्तीसगढ सरकार से आज तक ना कोई आर्थिक मदद मिली है और ना ही किसी प्रकार का कोई प्रोत्साहन. कलाकार को संतोष सिर्फ इस बात का है कि कलाकारी की जानकारी सूरजपुर कलेक्टर को मिल चुकी है. कलेक्टर ने स्थानीय प्रोजेक्ट में शामिल कर आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की कोशिश जरूर की है..  


बैंजो बजाने के शौक ने बनाया निर्मााता
सूरजपुर जिले में भैयाथान विकासखण्ड से कुछ दूर केवरा गांव है. गांव में रहने वाले कलाकार का नाम जगमोहन विश्वकर्मा है. जगमोहन को बचपन से वाद्य यंत्र बजाने का शौक था. आर्थिक तंगी और बचपन में माता पिता का साया सिर से उठ जाने के कारण जगमोहन शौक किसी तरह पूरा कर लेते थे. मगर उनके शौक से परिवार का पालन पोषण नहीं हो पाता था. परिवार में पत्नी और तीन बच्चों का पालन पोषण जगमोहन के लिए बड़ी चुनौती थी. बचपन में किसी रिश्तेदार के यहां बैंजो (वाद्य यंत्र) बजाने का शौक रखने वाले जगमोहन वाद्य यंत्र पर बचपन के दिनों से हाथ साफ कर रहे थे. लेकिन उनके इस शौक से भी परिवार का गुजर बसर कर पाना मुश्किल हो रहा था. लिहाजा 6 वर्ष पहले जगमोहन ने बैंजो (वाद्य यंत्र) बजाने के साथ बनाना शुरू कर दिया. धीरे धीरे वाद्य यंत्र बिकना शुरू हुआ तो परिवार का गुजर बसर होने लगा. लेकिन पिछले दो साल से कोरोना की मार ने जगमोहन के सिर पर एक बार फिर आर्थिक तंगी का बोझ डाल दिया. 


जुगाड़ से बने बैंजो की कई राज्यों में मांग
जगमोहन विश्वकर्मा ने 6 साल पहले जब बैंजो बनाना शुरू किया तो सामने सबसे बडी समस्या वाद्य यंत्र निर्माण में लगने वाले सामान को एकट्ठा करने की आई. मगर उन्होंने हार नहीं मानी और देसी जुगाड़ से बैंजो बनाना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने टीन की चादर, साइकिल के स्कोप, हार्डबोर्ड और तार के माध्यम से देशी स्टाइल में बैंजो बनाना शुरू किया. उसी दौरान उनके बनाए बैंजो को बिहार के किसी कलाकार ने खरीदा और फिर बैंजो की दमदार आवाज की गूंज इस कदर फैली कि बिहार, उत्तरप्रदेश के भोजपुरी कलाकार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के रंगमंचीय कलाकार और मुशायरा, कव्वाली करने वाले लोग भी मांग करने लगे. धीरे धीरे जगमोहन का बैंजो प्रोडक्शन का काम जोर पकड़ ही रहा था कि कोरोना काल ने व्यवसाय को तबाह कर दिया. स्थिति ये है कि पिछले दो साल से साल में दो तीन बैंजो का आर्डर भी मिलना बड़ी बात हो गई है. 


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बाजार से कम कीमत पर होती है बिक्री
गांव में रहकर जुगाड़ से इलेक्ट्रॉनिक और प्रोफेशनल बैंजो बनाने वाले जगमोहन बताते हैं कि बैंजो की उपयोगिता पहले कम थी. पहले एक्का दुक्का गीत-संगीत में प्रयोग किया जाता था. लेकिन आज के समय मे बैंजो की मांग बढ़ने लगी है. खुद के बनाए बैंजो और बाजार के बनाए बैंजो के सवाल पर कलाकार जगमोहन का मानना है कि उनका बनाया बैंजो भले ही देसी जुगाड़ से बना है, लेकिन बिहार, उत्तप्रदेश के कलाकार इसकी मजबूती और आवाज की जमकर तारीफ करते हैं. जगमोहन ने बताया कि एक बैंजो बनाने में 7 से 8 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं. बनने के बाद दाम 15-16 हजार तक मिल जाता है. लेकिन किसी फैक्ट्री में बने बैंजो का दाम बाजार तक आते-आते कम से कम 25 हजार रुपए हो जाता है. इसलिए लोग उनका बनाया बैंजो पसंद करते हैं.  


कलाकार पर अब कलेक्टर हुए मेहरबान
ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े जगमोहन विश्वकर्मा पत्नी और तीन बच्चों के साथ दो कमरे के घर में रहते हैं. मकान में रहकर बैंजो बनाने का काम करते हैं. उनके काम में परिवार के लोग खूब मदद करते हैं. जगमोहन से जब पूछा गया कि आपके गुरू कौन हैं, तो उन्होंने कहा मैं खुद गुरु हूं. मुझे किसी ने नहीं सिखाया. एक पुराने बैंजो के सिस्टम को देखकर खुद बैंजो बनाने लगा. दो कमरे के मकान में रहकर तंगहाल जिंदगी बिताते हुए भी शौक को पूरा करना आम इंसान के बस की बात नहीं है. हालांकि जगमहोन की कलाकारी के किस्से जब सूरजपुर कलेक्टर डॉ गौरव कुमार सिंह के पास पहुंचे, तो उन्होंने फिलहाल जगमोहन को कुछ शासकीय प्रोजक्ट दिया है. अब जिला मुख्यालय में बन रहे कला केन्द्र में भी कलाकारी को स्थान मिलने जा रही रहे है ताकि जगमोहन कला के दम पर नाम कमा सकें और परिवार का ठीक ढंग से पालन पोषण भी कर सकें.