Surajpur News: सूरजपुर जिले के मां महामाया शक्कर कारखाने में किसानों को गन्ना बेचने के लिए टोकन पाने और फिर फैक्ट्री में गन्ना लाकर उसे बेचने के लिए परेशान होना पड़ रहा है. यहां चार दिन तक किसानों के ट्रैक्टर गन्ना लेकर इंतजार करते रहते हैं. तब जाकर गन्ना बिक पा रहा है. गन्ना बेचने के लिए किसान रातभर रतजगा कर रहें हैं. इससे एक ट्रॉली में लोड गन्ना पांच क्विंटल तक सुख रहा है, जिससे किसानों को गन्ने का डेढ़ हजार व ट्रेक्टर व ट्रॉली का एक हजार अतिरिक्त किराया देना पड़ रहा है.


वहीं, अगर ट्रक में गन्ना आया है, तो एक दिन लाइन में खड़े होने पर प्रति दिन के हिसाब से ट्रक मालिकों को हजार रूपए अधिक देना पड़ रहा है. इस तरह अगर किसी किसान ने एक एकड़ में भी गन्ना की खेती की है तो पांच ट्रॉली गन्ना होने पर उसे इस अव्यवस्था की वजह से 12 हजार से अधिक का नुकसान हो रहा है.


वहीं, मिल प्रबंधन का कहना है कि किसानों को जिस दिन गन्ना लेकर आने के लिए टोकन दिया जाता है, किसान उस समय गन्ना लेकर नहीं आते हैं. यही वजह है कि यहां अव्यवस्था हो रही है. वहीं, किसानों का कहना है कि 23 जनवरी को अचानक कुछ दिन के लिए मिल बंद कर दिया गया था. इसकी वजह से जो टोकन जारी हुए थे, उस तारीख में वे गन्ना लेकर फैक्ट्री नहीं आए और फैक्ट्री में अब खरीद शुरू हुई है, तो पहले से जो पर्ची जारी हुए थे, उन्हें डिलीट कर दिया गया. किसानों का तर्क है कि कारखाना कुछ दिनों के लिए बंद करना था, तो उन तारीखों का पर्ची जारी नहीं करना था. 


टोकन के लिए किसान परेशान, लगा रहे चक्कर

धंधापुर निवासी अनंत यादव ने बताया कि वे पिछले दो माह से गन्ना का पर्ची पाने के लिए परेशान हैं. कई बार फैक्ट्री आकर कर्मचारियों से बात कर चुके हैं, लेकिन कैलेंडर के हिसाब से मिल में पर्ची जारी नहीं हो रहा है. इसके कारण अवस्था हो रही है. वहीं, प्रतापपुर क्षेत्र निवासी किसानों ने बताया कि कारखाना बंद रहने के दौरान लेप्स हुए टोकन का तारीख आगे बढ़वाने के लिए कहा जा रहा है, जबकि वे फैक्ट्री में गन्ना लेकर यहां आ गए हैं.


11 हजार से अधिक किसान हैं पंजीकृत 

दरअसल, शक्कर मिल में 11 हजार से अधिक किसान रजिस्टर्ड हैं. यहां किसानों के हित के लिए संचालक मंडल भी बनाया गया है, लेकिन कारखाना राजनीति का अखाड़ा बन गया है और किसानों के हित पर कोई ध्यान नहीं दिए जाने से किसानों में भारी गुस्सा है. किसानों का कहना है कि कारखाना आने पर कर्मचारी उनसे सही तरीके से बात नहीं करते हैं, जबकि उनके द्वारा इस मिल को स्थापित करने के लिए अंशदान किया गया है.


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