Watch: छत्तीसगढ़ के मांझी जनजाति की अनोखी परंपरा, लड़की के भाई कीचड़ से नहाकर करते हैं बारातियों का स्वागत
Mainpat Manjhi-Majhwar Tribe: रस्म को कैमरे में कैद करने वाले मैनपाट के शिक्षक कमलेश सिंह व स्थानीय लोगों ने बताया कि मांझी-मझवार जनजाति अपने गोत्र की पहचान विभिन्न पशु, पक्षियों के नाम पर रखते हैं.
Surguja News: छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के मैनपाट (Manpat) क्षेत्र में बसी मांझी-मझवार (Manjhi-majhwar Tribe) जनजाति में बारातियों के स्वागत की अनूठी परंपरा है. इसमें लड़की का भाई बारात का स्वागत करने कीचड़ से नहाते और नाचते-गाते बारात घर पहुंचते हैं. वहां पर वो दूल्हे को हल्दी और तेल लगाकर विवाह के मंडप में आने का आमंत्रण देते हैं. सरगुजा का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल मैनपाट अपने मनोहारी दृश्यों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है.
कई पीढ़ियों से बसे हैं लोग
छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से मशहूर मैनपाट के पहाड़ों और तराइयों में बसी मांझी-मझवार जनजाति अपनी अनूठी परंपराओं को लेकर भी जानी जाती है. मैनपाट के ही ग्रामीण इलाके में बारात के स्वागत के लिए यह अनूठी परंपरा वहां के लोगों के माध्यम से सामने आई है. मैनपाट के पहाड़ी और तराई इलाकों में लगभग 25 हजार से अधिक मांझी-मझवार जनजाति के लोग कई पीढ़ियों से बसे हैं. जंगल और नदियों पर आश्रित मांझी जनजाति पहले अभाव और बीमारियों के लिए सुर्खियों में रही थी. लेकिन, अब बदलती जीवन शैली में उनकी परंपरागत परंपराएं उन्हें सुर्खियों में ला रही हैं.
सोशल मीडिया पर जारी किया वीडियो
इस रस्म को कैमरे में कैद करने वाले मैनपाट के शिक्षक कमलेश सिंह व स्थानीय लोगों ने बताया कि मांझी-मझवार जनजाति अपने गोत्र की पहचान विभिन्न पशु, पक्षियों के नाम पर रखते हैं, जैसे भैंस, मछली, नाग सहित अन्य प्रचलित जानवर शामिल हैं. अलग-अलग उत्सवों में मांझी-मझवार अपने-अपने गोत्र के गौरव के मुताबिक उन पशु-पक्षियों के प्रतिरूप बन अपनी कुशलता का प्रदर्शन करते हैं. बुधवार को ऐसा ही अनूठा प्रदर्शन मैनपाट के स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर जारी किया.
गोत्र के अनुसार करते हैं बारातियों का स्वागत
इसमें मांझी जनजाति के भैंसा गोत्र के लड़की वालों ने बारातियों के स्वागत के लिए गांव में बकायदा एक ट्राली मिट्टी लाकर उसे कीचड़ में तब्दील किया. इसके बाद लड़की के भाई भैंस के समान पुआल की पूंछ बना कीचड़ से लथपथ होकर नाचते-गाते बारात घर की ओर गाजे-बाजे के साथ पहुंचे. यहां बारातियों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन कर दूल्हे को तेल और हल्दी लगाकर शादी के लिए मंडप में ले गए. यह अनूठी परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. मझवार लोगों का कहना है कि अलग-अलग गोत्र में बारातियों का स्वागत उनकी मान्यता प्राप्त पशु-पक्षियों के आधार पर ही किया जाता है, ताकि उनकी पहचान और गौरव से दूसरे परिवार अवगत हो सकें.
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