Surguja News: सरगुजा जिले के उदयपुर में संचालित परसा ईस्ट केते बासेन (PEKB) कोयला खदान (Coal Mine) की अनुमति को निरस्त करने की मांग की गई है. एनसीपी (NCP) के प्रदेश उपाध्यक्ष अनिल सिंह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu), भारत सरकार को पत्र लिखा है. उन्होंने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिले सरगुजा में वन अधिकारियों ने गलत जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) को दी है. इसलिए उदयपुर विकासखंड के परसा, घाटबर्रा, तारा क्षेत्र में कोयला खनन की दी गई अनुमति को निरस्त करने की मांग की जाती है.
परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान की अनुमति निरस्त करने की मांग
बताया गया कि छत्तीसगढ़ का सरगुजा आदिवासी बाहुल्य जिला है. सरगुजा पहाड़ी कोरवा (Pahari Korwa), पण्डो विशेष जनजाति और जंगली हाथी का भी रहवास क्षेत्र है. क्षेत्र में शेड्यूल 01 के अन्य जीव भी हैं. मुख्य वन संरक्षक सरगुजा और वन परिक्षेत्राधिकारी ने आदिवासियों के हितों को दरकिनार करते हुए गलत जानकारी दी है. वन अधिकारियों के गलत जानकारी से भारत सरकार को अवगत कराया गया है. प्रथम दृष्टया गंभीर आपराधिक मामला लगता है. क्षेत्र में हाथियों और अन्य जीवों का आवागमन बना हुआ. 10 से 15 किमी तक की दूरी तक कोयला खदान नहीं खोला जाना चाहिए और ना कोल खनन होना चाहिए. हाथी शेड्यूल 01 विश्व के तहत विशेष विलुप्त प्रजाति का वन्य जीव है. सरगुजा जिले में कोयला खनन के लिए लाखों पेड़ काटे जाने से पर्यावरण एवं जलवायु पर भारी असर पड़ेगा.
NCP ने वन अधिकारियों पर लगाया मंत्रालय को गुमराह करने का आरोप
लगभग 30 वर्ष पूर्व जशपुर जिले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि आदिवासियों की मूल संस्कृति जंगलों में है. उसकी रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए. मगर उसकी भी अनदेखी हो रही है. वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट प्लान केंद्र सरकार वन अधिकारियों से मांगती है. छत्तीसगढ़ के वन अधिकारी वन्य जीवों का जान बूझकर उल्लेख नहीं करते हैं. सरगुजा के उदयपुर विकासखंड क्षेत्र में अनेक आदिवासी परिवार की आजीविका का आधार वन क्षेत्र हैं. पेड़ों की कटाई होने से आदिवासियों का पलायन होगा और जंगल छोड़ शहर एवं झुग्गी में रहने को मजबूर होंगे. जंगल के पेड़ों की कटाई से आदिवासी संस्कृति पूरी तरह समाप्त हो जायेगी. सरगुजा जिले में पिछले पांच वर्षों के दौरान हाथियों से मारे जाने वाले आदिवासियों को करोड़ों रुपये का भुगतान हुआ है. इससे साबित होता है कि सरगुजा हाथी रहवास क्षेत्र है.
माइनिंग से तापमान, खेती और आदिवासियों का जनजीवन होगा प्रभावित
विकासखंड उदयपुर के घाटबर्रा, तारा क्षेत्र में राजस्थान विद्युत पावर लिमिटेड को मिली कोयला खुदाई क्षेत्र की जांच सीबीआई और अन्य उच्च स्तरीय जाचं एजेंसी से जांच कराई जाए. क्षेत्र हसदेव नदी के पास बना लेमरु हाथी रिजर्व क्षेत्र की भी अनदेखी की जा रही है. 10 से 15 किमी की दूरी में हाथियों के लिए लेमरू रिजर्व क्षेत्र है. क्षेत्र में लगातर हाथियों का विचरण है. इसलिए किसी भी तरह की माइनिंग और अन्य गतिविधियां नहीं होनी चाहिए. घने जंगलों को काटे जाने से नदी का जल स्तर गिरेगा, तापमान में कई तरह से फर्क पडेगा. आदिवासियों का जनजीवन प्रभावित होगा और खेती पर भी बुरा असर पड़ेगा. पर्यावरण को भारी नुकसान होगा और तापमान में जबरदस्त वृद्धि होगी. इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए क्षेत्र से कोयला उत्खनन को राष्ट्रहित और आदिवासी हित में जांच कराकर अनुमति को तत्काल निरस्त किया जाए.
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