Koriya News: छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में हाथियों का आतंक बरकरार है. सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर और कोरिया जिले में हाथियों की चहलकदमी बनी हुई है. हाथी आए दिन वन क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों की फसलों को रौंदकर नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह समस्या लंबे समय से बनी हुई है. इसी क्रम में कोरिया जिले में एक हाथी ने जबरदस्त उत्पात मचाया, इस हाथी ने खड़गंवा वन परिक्षेत्र के सकडा देवाडांड में  3 कच्चे घरों को तोड़ दिया, वहीं 14 किसानों की फसलों को रौंदकर बर्बाद कर दिया है. इसके अलावा बीती रात इसी हाथी ने पिता और 8 वर्षीय पुत्री पर हमला कर दिया. 


पिता-पुत्री को सूंड में लपेटकर पटका


दरअसल, उधनापुर निवासी इंद्रपाल अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ मेहमानी करने सुखनंदन पनिका के घर गया हुआ था. वहां रात करीब 12 बजे हाथी घर को तोड़ने लगा. हाथी से डरकर इंद्रपाल बेटी समेत खुद की जान बचाने के लिए भागा जिसे हाथी ने दौड़ाकर सूंड में लपेट लिया और पटक दिया. इससे ग्रामीण और उसकी बेटी घायल हो गई. कोरिया वनमंडल बैकुंठपुर के अनुसार, हाथी खड़गंवा वन परिक्षेत्र के सकड़ा देवाडांड जंगल में है, जो कि सलका, पंडोपारा, महादेवपाली, पैनारी डोमनीडांड, गड़हिया पारा, कोचका होते हुए सलका पहुंचा है. सोमवार की दोपहर तक हाथी सलका के जंगल में विचरण करते देखा गया है.


25 घर तोड़े सैकड़ों  किसानों की फसल की बर्बाद


गौरतलब है कि हाथी लगातार जान माल को नुकसान पहुंचा रहे हैं.  महीनेभर पहले खड़गंवा में आए हाथियों के दल ने 25 घर समेत सैकड़ों किसानों की फसल बर्बाद कर दी थी. इधर वन विभाग का दावा है कि कर्मचारी अलर्ट मोड़ पर हैं. विभाग लोगों को सतर्क रहने के लिए भी कह रहा है. सरपंच प्रभा सिंह कमरो ने बताया कि इलाके में दोबारा हाथी की धमक से ग्रामीण डरे हुए हैं. हाथी ने कई किसानों की फसल को रौंदकर बर्बाद कर दिया है और कुछ घरों को भी नुकसान पहुंचाया है. वन विभाग की टीम ने हाथी को यहां से खदेड़ तो दिया है लेकिन ग्रामीणों को डर है कि हाथी वापस फिर उनके घर की ओर न लौटे. इससे पहले भी दल में आए हाथियों ने घरों और फसलों को नुकसान पहुंचाया था.


वहीं, रेंजर अर्जुन सिंह बताया कि दोनों घायल पिता-पुत्री को उपचार के लिए 15 हजार रुपए की सहायता राशि दी गई है. वन परिक्षेत्र खड़गंवा के कर्मचारी हाथी की निगरानी कर रहे हैं. आसपास के गांवों में मुनादी कराई जा रही है. ग्रामीणों को हाथी के नजदीक न जाने व जंगल नहीं जाने की समझाइश दी जा रही है.


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