Ukraine Russia Crisis: रूस और युक्रेन के बीच जंग और तेज हो गई है. भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीय मूल के लोगों को निकालने में जुटी हुई है. यूक्रेन में फंसे भारतीय लोगों में ज्यादातर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र हैं. अब सवाल यह उठता है छात्रों की बड़ी संख्या सात समुद्र पार मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश क्यों जाती है? क्या भारत में रहकर मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर सकते? इन सवालों का जवाब यूक्रेन से भिलाई पहुंची मेडिकल की छात्रा नूपुर शर्मा ने दिया है.
विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने की क्या है मजबूरी?
नूपुर शर्मा के मुताबिक, कोई भी घर और देश छोड़कर विदेशों में पढ़ाई करना नहीं चाहता है. विदेशों में जाने की मजबूरी पर नूपुर ने बताया कि भारत में मेडिकल की पढ़ाई करना आसान नहीं है. उन्होंने दावा किया कि सरकारी मेडिकल सीट हासिल करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है और प्राइवेट मेडिकल सीट पर दाखिला लेने में करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इसलिए यूक्रेन समेत अन्य देशों में मेडिकल की पढ़ाई करना मजबूरी हो गया है.
नूपुर शर्मा वेस्ट यूक्रेन में टर्नोपल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं. चौथे साल के सेकंड सेमेस्टर में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही नूपुर 1 मार्च को यूक्रेन से भिलाई पहुंची हैं. नूपुर ने बताया कि उन्होंने साल 2018 में नीट का एग्जाम दिया था. नीट में स्कोर इतना अच्छा नहीं था कि दाखिला सरकारी मेडिकल संस्थान में होता. उन्होंने दावा किया कि प्राइवेट मेडिकल सीट पर दाखिला लेने के लिए एक करोड़ या अधिक की फीस मांगी जा रही थी. भारी भरकम फीस चुकता कर पाने में असमर्थ नूपुर ने आखिरकार यूक्रेन जाने का फैसला किया. यूक्रेन में हर साल 3 से 3.5 लाख रुपए की फीस लगती है. 6 साल के एमबीबीएस का कोर्स पूरा करने में ज्यादा से ज्यादा करीब 40 लाख रुपए का खर्च आएगा. इसी वजह से बड़ी संख्या में बच्चे यूक्रेन पढ़ने जा रहे हैं. नूपुर की मांग है कि भारत में भी फीस को यूक्रेन के बराबर या थोड़ा ज्यादा कर दिया जाए. कोई भी स्टूडेंड मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश नहीं जाएगा.
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यूक्रेन में नहीं होती मेडिकल की प्रवेश परीक्षा- छात्रा
भारत में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. छात्र को नीट की परीक्षा क्लीयर करने के बाद मेडिकल की पढ़ाई के लिए दाखिला मिलता है. नीट परीक्षा क्लीयर करने के लिए छात्र को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. नुपुर ने बताया कि प्राइवेट सीट पर एडमिशन आसानी से हो जाता है लेकिन उसकी फीस इतनी अधिक है कि सामान्य व्यक्ति के लिए भर पाना नामुमकिन है.
नूपुर ने बताया कि यूक्रेन में मेडिकल की प्रवेश परीक्षा भी नहीं होती है. केवल इंटरव्यू के आधार पर ही स्टूडेंट का दाखिला एमबीबीएस कोर्स में हो जाता है. विदेश से एमबीबीएस की पढ़ाई कर भारत आने पर छात्र को एफएमजीई का एग्जाम देना पड़ता था. भारत में एफएमजीई एग्जाम को बंद कर अब नेशनल एग्जिट टेस्ट लिया जा रहा है. नेशनल एग्जिट टेस्ट भारत और विदेश दोनों जगह से पढ़ाई करने वाले बच्चों को देना पड़ता है. दोनों ही जगह के स्टूडेंट्स को एक जैसी प्रक्रिया से गुजरना होता है. ऐसे में बच्चे विदेश से पढ़ाई करना ज्यादा बेहतर समझते हैं.