Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर (Bastar) में आदिवासियों के एक प्रेमी जोड़ों का मंदिर पूरे विश्व में विख्यात है. यह देश का एकलौता ऐसा मंदिर है जहां इन प्रेमी जोड़ों की पूजा पाठ की जाती है और यहां पहुंचने वाले प्रेमी जोड़ों के साथ सभी लोग अपनी अपनी मनोकामना भी मांगते हैं, साथ ही हर साल इस मंदिर में मेला भी लगता है और इस मेले में सिर्फ बस्तर ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लोग भी पहुंचते हैं.


इन जोड़ों की प्रेम कहानी इतनी प्रसिद्ध है कि देश के साथ-साथ विदेशी लेखकों ने भी अपने किताबों में इनकी प्रेम कहानी दर्ज की है, साथ ही छत्तीसगढ़ के ऐसे कई उपन्यासकार हैं जिन्होंने इस प्रेमी युगल पर अपनी-अपनी किताबें लिखी हैं. इन प्रेमी जोड़ों का नाम है "झिटकु मिटकी'  खास बात यह है कि इन आदिवासियों के प्रेमी जोड़ों की प्रतिमा राष्ट्रपति भवन की भी शोभा बढ़ा रही है और जिसकी गूंज पूरे देश में है. आज के दौर में दोनों की प्रेम कथा ने विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है.


देवी देवता के रूप में पूजते हैं ग्रामीण
दरअसल प्यार करने, उसे पाने और निभाने के लिए प्रेमी जोड़ों के एक दूजे के लिए मर मिटने वाली इस कथा में कितनी हकीकत और कितना फसाना शामिल है, इस पर भले ही कोई शोध नहीं हुआ है, लेकिन यह सच है कि हर साल छत्तीसगढ़ के कोंडागांव (Kondagaon) जिले के बड़े राजपुर के विश्रामपुरी में झिटकु मिटकी के नाम का मंदिर है, जहां मेला लगता है. झिटकु मिटकी की कहानी को लोग गपादाई और खोड़ीया राजा की कहानी के नाम से भी जानते हैं. यह बस्तर के आदिवासी युवक-युवतियों के बीच प्रेम की कथा है. झिटकु मिटकी की प्रेम कथा देश विदेश में भी मशहूर है. 


खास बात यह है कि इस पवित्र प्रेम कथा को लेकर यहां के आदिवासियों की सोच है कि यह दोनों देवी और देवता है, इसलिए आज भी इनकी पूजा की जाती है. बस्तरवासी इन्हें धन की देवी देवता के रूप में भी सालों से पूजते आ रहे हैं और उनकी प्रतिमाओं पर ग्रामीण फूल अर्पित करते हैं. वहीं बस्तर घूमने आने वाले सैलानी बेल मेटल और काष्ठ कला के साथ मिट्टी से बनाई गई  झिटकु मिटकी की प्रतिमाएं अपने साथ ले जाते हैं और इन्हें बस्तर के अमर प्रेमी के रूप में सम्मान देते हैं.


झिटकु मिटकी का हुआ प्रेम विवाह
जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि, झिटकु मीटकी की प्रेम कथा यहां के आदिवासियों और छत्तीसगढ़ के उपन्यासकार द्वारा लिखी गई किताबों के अनुसार कोंडागांव जिले के बड़े राजपुर के विश्रामपुरी के एक गांव में सुकल नाम का युवक रहता था. एक दिन उसकी मुलाकात गांव के मेले में पेंड्रावन गांव की सुकलदाई नामक युवती से हुई. पहली नजर में ही दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठे और बात परिवार तक पहुंच गई. सुकलदाई के 7 भाई थे जो इस रिश्ते के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे, लेकिन सुकलदाई के बहुत प्रयास के बाद सातो भाई मान गए. इसके बाद भाइयों ने आजीवन सुकलदाई को अपने पास ही रखने के लिए उसके पति सुकल को अपना घर जमाई बना लिया.


बलि चढ़ाकर फेंक दिया तालाब में
वह ससुराल में तीन साल तक रहकर घरेलू काम में मदद करता रहा. इसके बाद उनका विवाह हो गया और उन्होंने अपना अलग घर बसा लिया. एक बार सुकुल और सुकलदाई के सातों भाइयों ने मिलकर खेती के सिंचाई के लिए एक बांध बनाया और जब बांध बन गया तब रात को देवी ने सपने में सुकलदाई के भाइयों से कहा कि तुम मुझे नरबलि दो, तभी यह बांध सफल होगा. इसपर उन लोगों ने सभी प्रकार के प्रयत्न किए, लेकिन उन्हें बलि के लिए कोई आदमी नहीं मिला. तब उस गांव के कुछ युवकों ने सुकलदाई के 7 भाइयों को भड़काना शुरू किया. उनकी बातों में आकर भाइयों ने सोचा कि क्यों ना अपने दामाद सुकल की बलि दे दी जाए. यह सोचकर उन्होंने सुकल की बलि चढ़ाकर उसका शरीर तालाब में फेंक दिया.


मिटकी ने तालाब में कूदकर दी जान
इधर मिटकी अपने पति का बेसब्री से इंतजार करती रही. सुकुल जब रात तक नहीं लौटा तो सुकलदाई बांस की टोकरी और सब्बल लेकर अपने पति को ढूंढने निकल गई. चांदनी रात थी, उसने देखा कि तालाब में सिर कटी कोई लाश तैर रही है. उसने पास जाकर पहचानने की कोशिश की तो वह लाश उसके पति सुकल की निकली. सुकलदाई को अपने भाइयों की करतूत का पता चल गया था. अपने भाइयों के हिंसक करतूत से दुखी मिटकी ने भी उसी तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी. सुबह जब ग्रामीण तालाब पर पहुंचे तो सुकलदाई की बांस की टोकरी और सब्बल तालाब के किनारे और उसकी लाश पानी में तैरती मिली. इस तरह प्रेमी जोड़ों का अंत हो गया. इस घटना के बाद से गांव में सुकल और सुकलदाई को झिटकु मिटकी के नाम से नई पहचान मिली. मिटकी की मौत के बाद से झिटकु मिटकी की पूजा देवी देवता की तरह की जाने लगी और उनके प्रेम को काफी पवित्र माना गया. 


हेमंत कश्यप बताते हैं कि झिटकु मिटकी को बस्तर में अनेको नाम से जाना जाता है, जिसमे डोकरी देव, गप्पा घासीन, दूरपत्ती माई, डोकरा डोकरी, गौडीन देवी और बूढ़ी माई भी कहा जाता है. इनकी प्रतिमा देवी माता को सिर पर मुकुट धारण किए, कान में खिलंवा पहने और बाएं हाथ में सब्बल और टोकरी लिए बनाया जाता है. आज भी बस्तर के हर गांव में मवेशियों के तबेले में खोड़ीया देव (झिटकु) की पूजा की जाती है. इसके साथ ही खुद की जान देने वाली गपादाई (मिटकी) को ग्रामीण आराध्य देवी के नाम से पूजते हैं.


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