Chhattisgarh News: अंग्रेजो के खिलाफ 1857 की क्रांति की आग देश के अलग-अलग कोने में धधक उठी थी. इस आग की लपटे छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल रही था. सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह ने अंग्रेजों को कई बार धूल चटाया था. अंग्रेजों से लड़ने के लिए नारायण सिंह ने खुद की एक बड़ी सेना तैयार की थी. जिसमें करीब 900 की संख्या में ग्रामीण उनके साथ बंदूकधारी अंग्रेजी सेना से भिड़ गए थे. जानिए छत्तीसगढ़ के सपूत वीर नारायण सिंह की कहानी-
नारायण सिंह से वीर नारायण सिंह बनने की कहानी
दरअसल वर्तमान छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के सोनाखान इलाके के एक बड़े जमींदार वीर नारायण सिंह थे. नारायण सिंह बिंझवार की कहानी काफी दिलचस्प है. 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजी सेना छत्तीसगढ़ में अपना कब्जा जमाना चाहती थी. तब नारायण सिंह के पिता रामराय सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इसके बाद जब नारायण सिंह जमींदार बने उसी समय सोनाखान क्षेत्र में अकाल पड़ा. ये 1856 का समय था जब एक साल नहीं लगातार तीन साल तक लोगों को अकाल का सामना करना पड़ा. इससे इंसान तो इंसान जानवर भी दाने-दाने के लिए तरस गए.
नारायण सिंह ने अनाज भंडार से अनाज लूटकर ग्रामीणों में बंटवाया
इतिहासकार बताते है कि सोनाखान इलाके में एक माखन नाम का व्यापारी था. जिसके पास अनाज का बड़ा भंडार था. इस अकाल के समय माखन ने किसानों को उधार में अनाज देने की मांग को ठुकरा दिया. तब ग्रामीणों ने नारायण सिंह से गुहार लगाई और जमींदार नारायण सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने व्यापारी माखन के अनाज भण्डार के ताले तोड़ दिये. नारायण सिंह ने गोदामों से उतना ही अनाज निकाला जितना भूख से पीड़ित किसानों के लिये आवश्यक था. इस लूट की शिकायत व्यापारी माखन ने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर से कर दी. उस समय के डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखन के जमींदार नारायण सिंह के खिलाफ वारन्ट जारी कर दिया और नारायण सिंह को सम्बलपुर से 24 अक्टूबर 1856 में बन्दी बना लिया गया. कमिश्नर ने नारायण सिंह पर चोरी और डकैती का मामाला दर्ज किया था.
संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय की मदद से जेल से भागे नारायण सिंह
सोनाखान के किसान अपने नेता को जेल में में देखकर दुःखी थे, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था पर उसी समय देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया. इस अवसर का फायदा उठाकर संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय की मदद से किसानों ने नारायण सिंह को रायपुर जेल से भगाने की योजना बनाई और इस योजना में सफल हुये. अब अंग्रेज इस घटना से आग बबूला हो गए और नारायण सिंह की गिरफ्तारी के लिए एक बड़ी सेना भेज दी.
अंग्रेजों से लड़ने के लिए नारायण सिंह ने खुद की आर्मी बनाई
नारायण सिंह ने सोनाखान में अंग्रेजों से लड़ने के लिए अपनी खुद की सेना बना ली थी. उन्होंने 900 जवानों के साथ अंग्रेजी सेना का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए तैयार थे. दुर्भाग्य की बात ये थी कि उस समय नारायण सिंह के रिश्ते में चाचा लगने वाले देवरी के जमींदार ने अंग्रेजों की खुलकर सहायता की. इसके बाद स्मिथ की सेना ने लंबे समय के संघर्ष के बाद सोनाखान को चारों तरफ से घेरकर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया.
रायपुर के जय स्तंभ चौक में दी गई फांसी
इसके बाद अंग्रेजों ने रायपुर के जय स्तंभ चौक पर आम नागरिकों के सामने नारायण सिंह को 10 दिसंबर 1857 में फांसी दे दी. नारायण सिंह की बहादुरी से अंग्रेजों का छत्तीसगढ़ कब्जा का सपना टूटा. इसके बाद अंग्रेजी सेना के खिलाफ जमकर विरोध हुए. आम जनता के मन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के भाव ने जन्म ले लिया और इसके बाद आए दिन छत्तीसगढ़ की जमीन से अंग्रेजी सेना को ललकारा गया.