छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में दूल्हा और दुल्हन का स्वागत अनोखे तरीके से किया गया है यह स्वागत अब पूरे जिले भर में चर्चा का विषय बन गया है. जिसने भी इस स्वागत कार्यक्रम को देखा उन्होंने उस लम्हे को अपने-अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया. दरअसल जिले के ग्राम पाकुरभाट में किशन यादव अपनी पत्नी दुर्गा यादव को ब्याह कर अपने गृहग्राम लाया तो उनके परिवार वालों ने प्राचीन परंपरा के साथ उनका स्वागत बैलगाड़ी से किया और पूरे गांव का भ्रमण कराते हुए दूल्हा और दुल्हन को बैलगाड़ी से अपने घर ले गए.


बैलगाड़ी में दूल्हा दुल्हन को देखकर लोगों ने ली फोटो


आज जहां लोग एसी गाड़ियों में दूल्ह-दुल्हन को ले जाते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ की इस प्राचीन परंपरा के अनुसार बैलगाड़ी में दुल्हन को ले जाने की झलक जब लोगों ने देखा तो उनकी आंखें खुली रह गईं और लोग इस नजारे को अपने मोबाइल कैद करने लगे. देखते ही देखते यहां पर सैकड़ों लोगों की भीड़ लग गई. परिवार वालों के साथ-साथ अन्य राहगीर भी रुक कर इस दूल्हा दुल्हन के स्वागत को देखने के लिए खड़े रहे. लोगों में जमकर उत्साह देखने को मिला.




दूल्हा-दुल्हन को बैलगाड़ी में बैठकर पूरे गांव का कराया भ्रमण


ग्रामीणों ने बताया कि गांव के धनुष यादव के बेटे किशन यादव की बारात गांव पाकुरभाट से बेल्हारी गई हुई थी. जहां पर किशन यादव की दुर्गा यादव से शादी हुई. उनके परिवार वालों ने प्राचीन परंपरा के अनुसार बैलगाड़ी से उनका स्वागत किया और उन्हीं में सवारी कर उन्हें गांव भ्रमण कराते हुए घर ले गए. दूल्हा - दुल्हन को घर तक ले जाने के लिए उनके परिवार वालों ने पूरी व्यवस्था की हुई थी. यहां पर बैलगाड़ी और बैल को भी सजाया गया था. सजाए हुए इस बैलगाड़ी में दूल्हा-दुल्हन को बैठाया गया और साथ में कुछ बच्चे भी उसमें बैठे जिसके बाद पूरा परिवार उन्हें बाजे गाजे के साथ स्वागत करके अपने घर ले गए.


दूल्हे के पिता ने कहीं यह बातें


दूल्हे के पिता धनुष यादव ने बताया कि प्राचीन परंपरा की झलक दिखनी चाहिए. हमारे बाप - दादा और हम स्वयं बैलगाड़ी में बारात गए हुए थे और आज की युवा पीढ़ी इन सब बातों को भूल गई है. हमने छोटा सा प्रयास किया है. और काफी अच्छा लगा कि लोगों ने इसकी तारीफ की और बच्चे पूछ रहे थे कि आखिर बैलगाड़ी में दूल्हा-दुल्हन को क्यों ले जाया जा रहा है. तब हम ने बताया कि हम तो पूरा बारात बैलगाड़ी में गए थे. उसी में खाने - पीने का सामान रखकर आराम से बाराती निकलती थी.


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