Chhattisgarh News: 65 साल पुराने जर्जर पुल पर चलने को मजबूर हुए ग्रामीण, PWD ने बोर्ड लगाकर झाड़ा पल्ला
65 Years Old Bridge: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में करीब 65 साल पुराने पुल का नींव कमजोर हो चुका है. इस पुल से गुजरने वाले वाहन चालकों को जान हथेली पर लेकर गुजरना पड़ता है.
Korba News: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक ऐसा पुल है, जो पूरी तरह से जर्जर हो चुका है. करीब 65 साल पुराने पुल का नींव कमजोर हो चुका है. ग्रामीण पुल के दोनों ओर मिट्टी डाल मजबूत करने का प्रयास तो करते हैं, लेकिन उनकी सारी मेहनत बारिश शुरू होते ही पानी फिर जाता है. इस पुल से गुजरने वाले दो पहिया, चार पहिया और भारी वाहन चालकों को जान हथेली पर लेकर गुजरना पड़ता है. खास बात तो यह है कि लोक निर्माण विभाग (PWD) ने दुर्घटना जन्य क्षेत्र, धीरे चलें का बोर्ड लगाकर पल्ला झाड़ लिया है.
खोखला हो चुका है पुल
दरअसल, मामला झगरहा-कुदमुरा मार्ग में कोरकोमा मुख्य मार्ग स्थित पुल का है. कोरबा जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम कोरकोमा क्षेत्र में शिक्षा और व्यवसाय का प्रमुख केंद्र है. करीब 65 साल पहले वन विभाग द्वारा जंगल से लकड़ी और वनोपज परिवहन के लिए कचांदी नाला में पुल का निर्माण कराया गया था. वन विभाग द्वारा निर्मित यह पुल पूरी तरह जर्जर हो गई है. पुल के नींव में लगे पत्थर उखड़ चुके हैं. इसके दोनों ओर बनाए गए रेलिंग टूट चुका है. पुल के दोनों छोर खोखले हो चुके हैं.
पुननिर्माण को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहे अधिकारी
आलम यह है कि पुल को पार करना खतरे से खाली नहीं है. लंबे अर्से से ग्रामीण पुल को बचाने जद्दोजहद करते आ रहे हैं. ग्रामीणों ने पुल में ईंट गारे व लकड़ी से रेलिंग का निर्माण किया है, जो भारी वाहनों की आवाजाही से जर्जर हो चुका है. वहीं गर्मी और ठंड के दिनों में पुल के दोनों छोर में मिट्टी डालकर मजबूत करने का प्रयास किया जाता है, ताकि लोग बिना दहशत आवाजाही कर सकें. यह सिलसिला बीते कई सालों से चला आ रहा है. इस पुल से प्रतिदिन एक दर्जन यात्री बस के अलावा भारी और हल्के वाहन की आवाजाही होती है. मुख्य मार्ग होने के कारण पुल को पार करना हर किसी के लिए अनिवार्य होता है. चाहे वह अफसर हो या फिर जनप्रतिनिधि या विभागीय अधिकारी. वे भी वाहन में सवार होकर पुल से पार होते हैं, लेकिन पुल के जीर्णोद्धार अथवा पुननिर्माण को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहे.
धीरे चलें का बोर्ड लगाकर दिया छोड़
खास बात तो यह है कि कुछ साल है पहले ग्रामीणों ने पुल की मांग को लेकर सख्त रवैया अपनाने का मन बना लिया था. जिसकी भनक लगने पर लोक निर्माण के विभागीय हरकत में आए थे. उन्होंने ने भी पुल के दोनों ओर दुर्घटना जन्य क्षेत्र, धीरे चलें का बोर्ड लगाकर छोड़ दिया है. अब जब एक बार फिर बारिश शुरू हो गई है, पुल के दोनों और मिट्टी का कटाव शुरू हो गया है, जिससे लोगों को जान हथेली पर लेकर आवागमन करना पड रहा है.
पुल के ध्वस्त होने से टूट जाएंगे कई गांव के संपर्क
कोरबा-झगरहा कुदमुरा मार्ग स्थित कोरकोमा का पुल न सिर्फ वनांचल गांव बल्कि झारखंड, ओड़िसा जैसे राज्य को भी जोड़ता है. इस मार्ग में कई यात्री बसों का परिचालन होता है. यदि पुल ध्वस्त हो जाता है तो कई गांवों के संपर्क टूट जाएँगे. मार्ग में आवाजाही बंद होने से कोरबा तक पहुंचने करीब 20 किलोमीटर की दूरी अतिरिक्त तय करनी पड़ेगी. कोरकोमा सहित आसपास के जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों लंबे समय से पुल निर्माण की मांग करते आ रहे हैं. उन्होंने पुल निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन का मन बना लिया था. जिसकी भनक लगते ही अफसर हरकत में आ गए. डीएमएफ फंड से पुल निर्माण के लिए आठ लाख रुपए स्वीकृत होने की चर्चा से ग्रामीणों ने राहत की सांस ली, लेकिन दो साल बाद भी पहल नहीं होने से निराशा ही हाथ लगी है.
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