Mahasamund News: छत्तीसगढ़ में महिलाओं को रोज़गार से जोड़ने में सरकार का योगदान अहम है पर महासमुंद ज़िले की महिलाओं का एक समूह पिछले 25 सालों से पर्यावरण संतुलन की दिशा में अलग ही उत्साह से काम कर रहा है. गोबर से दर्जनों उत्पाद बना चुके इस समूह ने इस बार एक अनोखी “ईको फ्रेंडली पेंसिल” बनाई है. इस पेंसिल की खासियत ये है कि जब आप इसे इस्तेमाल करके फेंक देंगे तो इससे अपने आप ही पौधे उग आएंगे. आपको यह सुनकर आश्चर्य तो हुआ होगा लेकिन यह बिल्कुल सच है. वेद माता गायत्री गौशाला की महिला समूहों ने यह अनोखी पेंसिल तैयार की है.
25 सालों से ईको फ्रेंडली आइटम बना रहा समूह
महासमुंद ज़िले के भेलसर गांव में सन् 1998 यानी पिछले 25 वर्षों से वेद माता गायत्री गौशाला संचालित है. पिछले कुछ सालों में गौशाला में पदस्थ इन महिलाओं ने गोबर और गौ मूत्र से कई प्रोडक्ट तैयार किए हैं. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाली वेदमाता गायत्री गौशाला की महिलाओं ने गोबर से निर्मित गणेश मूर्ती, दिया, गौमूत्र, अर्क, राखी, गोमय, जार माला, अगरबत्ती, केंचुआ खाद, दंत मंजन जैसे रोज़ मर्रा में काम आने वाले प्रोडक्ट तैयार किए हैं. इनके इन प्रोडक्ट की बदौलत महिलाओं के इस ग्रुप की धमक दूर दूर तक है और लोग इनके प्रोडक्ट को हाथों हाथ ख़रीद रहे हैं. इसी बीच गौशाला की महिलाओं ने एक नया उत्पाद तैयार किया है जिसकी चर्चा भी अब तेज हो गई है.
महिलाओं ने बनाई ईको फ्रेंडली पेंसिल
महासमुंद के भलेसर गांव में संचालित वेद माता गायत्री गौशाला की महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में इको फ्रैंडली पेंसिल बनाने का काम शुरू किया है. दरअसल इसको बनाने के लिए इन लोगों ने बाज़ार से 5 रुपए में काग़ज से बनी पेंसिल ख़रीदी और पेंसिल के अंतिम हिस्से पर कैप्सूल के सहारे बरगद, आम, गुलमोहर के साथ कुछ सब्ज़ियों के बीज पीछे टेप से चिपका दिए और एक स्टीगर लगा दिया. गौशाला की महिलाओं के मुताबिक़ इस पेंसिल को बनाने में कुल 7 रुपए खर्च हो रहे हैं और बाज़ार में इसको 10 रुपए में बेचा जा रहा है. ग्रुप की महिलाओं ने अभी 300 से अधिक पेंसिल बना ली हैं. दरअसल ईको फ्रैंडली पेंसिल बनाने के पीछे ग्रुप के लोगों का मक़सद है कि जब बच्चे पेसिंल का उपयोग करने के बाद बचे हुए हिस्से को कहीं फेंकेंगे तो पेंसिल के आखिरी हिस्से में लगा बीज का हिस्सा मिट्टी के संपर्क में आने पर पौधे का रूप ले ले लेगा और कुछ सालों में पौधा पेड़ बन जाएगा. इससे पर्यावरण संतुलन की दिशा में मदद मिलेगी.
यह भी पढ़ें: