Delhi News: दिल्ली से एक नवजात की मौत का ऐसा दुखद मामला सामने आया है, जिसे जानकर शायद किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी. एक दंपति की जिंदगी में उनके बच्चे का जन्म सबसे खास होता है. बच्चे के जन्म की खुशी कुछ विशेष ही होती है, जो उन्हें, और उनके परिवार को पूरा करती है. लेकिन जरा सोचिए, उस मां-बाप पर क्या बीतती होगी, जिनके बच्चे का जन्म के बाद इलाज के आभाव में मौत हो जाए. जी हां! विश्वस्तरीय इलाज की सुविधा का दावा करने वाली दिल्ली और केंद्र सरकार के नामचीन अस्पतालों में नवजात को लेकर भटके उस पिता को किसी भी अस्पताल में इलाज नहीं मिला. इलाज तो दूर की बात है उसे देखा तक नहीं गया, जिससे नवजात की मौत हो गई और एक मां की गोद उजड़ गई.
द्वारका के दादा देव अस्पताल में 10 अक्टूबर को करण कुमार की पत्नी ने एक बच्ची को जन्म दिया था. जन्म के बाद से ही बच्ची लगातार रो रही थी. मां के दूध पिलाने के बाद भी बच्ची शांत नहीं हुई. डॉक्टरों ने नवजात की जांच के बाद उसके पिता करण को बताया कि नवजात के पेट में दर्द है और उसे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है. नवजात की दिक्कतों को देखते हुए अस्पताल ने उसके पिता को सफदरजंग अस्पताल ले जाने के लिए कह कर वहां के लिए रेफर कर दिया. इसके बाद करण नवजात को रविवार की सुबह सफदरजंग अस्पताल पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने बेड खाली न होने का कारण बता कर उसे भर्ती करने से इनकार कर दिया.
कई अस्पतालों ने एडमिट करने से किया इनकार
वहां से मायूस हुए नवजात के पिता तुरंत ही उसे लेकर कलावती सरण अस्पताल गए. वहां भी नवजात को भर्ती करने से मना कर दिया गया. यही हाल राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी हुआ और लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में तो डॉक्टरों ने अमानवीयता का परिचय देते हुए नवजात को देखे बिना ही उन्हें वहां से भगा दिया. इस तरह नवजात के पिता उसे लेकर 32 घंटों तक अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे, लेकिन विज्ञापनों में लाखों, करोड़ों रुपये खर्च कर वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा करने वाली दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के अस्पतालों के डॉक्टरों ने भर्ती तो दूर की बात है, उस नवजात को इलाज के नाम पर देखना तक भी जरूरी नहीं समझा.
सफदरजंग अस्पताल में बच्ची ने तोड़ा दम
मजबूर पिता, थक-हार कर वापस सफगरजंग अस्पताल पहुंचा, जहां फिर से उन्हें बेड खाली न होने की बात सुननी पड़ी. उन्होंने डॉक्टरों की खूब मिन्नतें कीं, हाथ-पांव जोड़े लेकिन नवजात को भर्ती नहीं लिया गया. तबियत बिगड़ने की वजह से उसे रात भर अस्पताल में रहने की अनुमति जरूर दे दी गई, लेकिन आवश्यक इलाज और वेंटिलेटर सपोर्ट नहीं उपलब्ध कराया गया. इस कारण सोमवार की सुबह 4 बजे बच्ची ने दम तोड़ दिया.
हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर की डायरेक्टर ने क्या कहा?
तकरीबन 32 घंटों तक नवजात का पिता अस्पतालों के चक्कर लगाता रहा, उसके पिता के साथ नवजात भी इस दौरान अपनी जिंदगी और मौत से जद्दोजहद करती रही. लेकिन इसमें दोनों ही आखिरकार हार गए और नवजात की सांसें टूट गईं. नवजात की मौत के बाद, हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर की डायरेक्टर वंदना बग्गा का एक बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने नवजात के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी को लेकर अनभिज्ञता जाहिर की है. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा है कि, नवजात को इलाज मिलना चाहिए, यह उसका अधिकार है. इस बारे में अस्पतालों से पता कराएंगे कि क्यों नवजात को इलाज नहीं दिया गया?
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