Delhi: दिल्ली हाईकोर्ट के फ्री बेड निरीक्षण समिति के सदस्य अशोक अग्रवाल ने दिल्ली के प्राइवेट हॉस्पिटल पर आरोप लगाते कहा कि रियायती रेट पर बेड पाने वाले EWS मरीजों के लिए आरक्षित करीब 64 फीसदी बेड फिलहाल खाली हैं. इस मामले को लेकर अशोक अग्रवाल ने  दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) को पत्र लिखकर मामले की तत्काल जांच करने और अस्पतालों में इष्टतम व्यस्तता हासिल करने के उपाय करने को कहा है.


अशोक अग्रवाल ने बताया कि हमारे द्वारा 16 प्राइवेट हॉस्पिटल में एक सर्वे किया गया जिसमें पता चला की इन अस्पतालों में 36 फीसदी बेड पर ही EWS पर कब्जा है. कुछ अस्पतालों में ईडब्ल्यूएस बेड पर कब्जा था. कुछ अस्पताल में कोविड-19 रोगियों के लिए ईडब्लयूएस बेड निर्दिष्ट किए थे. EWS बेड को कोविड-19 के नाम पर आरक्षित रखने का कोई औचित्य नहीं है.


EWS के लिए 950 से अधिक बेड
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में कहा गया है कि जिन निजी अस्पतालों ने सस्ती दरों पर बेड हासिल की है उन्हें अपने इन-पेशेंट विभाग की क्षमता का 10% और गरीब मरीजों के मुफ्त इलाज के लिए 25% ओपीडी आरक्षित करना होगा. अग्रवाल ने कहा कि शहर के 61 ऐसे अस्पतालों में ईडब्ल्यूएस रोगियों के लिए 950 से अधिक बेड हैं.


नियम कहता है कि कोई भी गरीब मरीज ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत सीधे निजी अस्पताल में प्रवेश के लिए जा सकता है या जरूरत पड़ने पर सरकारी अस्पताल अपने मरीजों को रेफर कर सकता है. लेकिन गरीबों, कार्यकर्ताओं ने कहा, अक्सर निजी अस्पतालों द्वारा हतोत्साहित किया जाता था और कहा जाता था कि बिस्तर उपलब्ध नहीं होने के बहाने दूर हो जाते हैं.


वहीं एक अन्य कार्यकर्ता ने बताया कि कोरोना महामारी के पहले ईडब्ल्यूएस बेड का अधिभोग 85 फीसदी तक पहुंच गया थी. लेकिन अब फिर से यह नीचे है. सरकार को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि कमजोर लोगों को उनका हक मिले.


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