Delhi News: यूके से वापस आईं भारत की 7 धरोहरें पुराना किला स्थित संग्रहालय में की जाएंगी प्रदर्शित
देश के विभिन्न हिस्सों से अंग्रेज भारत की धरोहर अपने साथ ले गए थे. इन धरोहरों में मंदिर के तीन खंभे, ग्वालियर का संगमरमर का स्तंभ, मूर्तियों से लेकर ऐतिहासिक तलवार भी.
Delhi News: अंग्रेजों ने भारत पर अपने आधिपत्य के दौरान न केवल देश पर हुकूमत की बल्कि देश की कई बहुमूल्य धरोहरों को भारत से अपने देश भेज दिया. उन्हीं बहुमूल्य धरोहरों में से 7 धरोहर को यूनाइटेड किंगडम (UK) ने भारत को लौटा दिया है. भारत सरकार के माध्यम से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को मिलीं इन धरोहरों को पुराना किला स्थित संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा.
ये वे धरोहर हैं, जो भारत में अपना अधिपत्य जमाने के बाद अंग्रेज देश के विभिन्न हिस्सों- कानपुर, पटना ग्वालियर, कोलकाता और हैदराबाद से अपने साथ ले गए थे. इन धरोहरों में मंदिर के तीन खंभे, ग्वालियर का संगमरमर का स्तंभ, मूर्तियों से लेकर ऐतिहासिक तलवार तक शामिल हैं. स्काटलैंड ने पिछले साल इन धरोहर को यूके की सरकार को भारत के लिए सौंप दी थी, जिन्हें यूके सरकार ने वहां स्थित भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को सौंपी थीं. उसके बाद इन्हें भारत वापस लाया गया है.
भारतीय-फारसी नाग तलवार आयी वापस
ग्लासगो संग्रहालयों के परिग्रहण रजिस्टर के अनुसार मध्य भारत के ग्वालियर के किले में एक पुराने महल के खंडहर से जड़ा हुआ संगमरमर का स्तंभ प्राप्त किया गया था. स्तंभ में पत्तेदार डिजाइन है और यह गुंबद से ढका है. यह 1877 में जे.एमसी केचनी, 1 केलबर्न टेरेस, क्रासहिल, ग्लासगो द्वारा ग्लासगो संग्रहालय को उपहार में दिया गया था. इसी तरह 14वीं शताब्दी की भारतीय-फारसी नाग तलवार वापस आई है. सेरेमोनियल इंडो-फारसी सर्प तलवार दक्षिण भारत की है, जो लगभग 14वीं शताब्दी की है. तलवार में एक लहरदार सांप का ब्लेड होता है, जिसमें एक बल्बनुमा सिरा और दांतेदार किनारे होते हैं.
कोलकाता से भगवान की बलुआ पत्थर की मूर्ति
साल 1905 में तलवार जनरल सर आर्चीबाल्ड हंटर कमांडर-इन- चीफ, बाम्बे कमांड, (1903- 1907) ने हैदराबाद के प्रधानमंत्री महाराजा सर किशन प्रशाद बहादुर (यामिन उस सल्तनत) से खरीदी थी. कोलकाता से भगवान की बलुआ पत्थर की मूर्ति भी आई है. लकड़ी के फ्रेम में बलुआ पत्थर के एक स्लैब पर उकेरी गई भैरव की आकृति 1877 में विलियम बार्कले, ग्लासगो द्वारा संग्रहालय को उपहार में दी गई थी. कानपुर से तीन नक्काशीदार पत्थर के खंभे के टुकड़े भी वापस आए हैं. खंभे के तीन टुकड़े एक मंदिर के हैं.
बिहार के पटना जिले से सूर्यदेव की मूर्ति भी वापस आई
ये तीनों खंभे कानपुर (यूपी) के बेहटा गांव में जगन्नाथ मानसून मंदिर से 1832 में इंग्लैंड ले जाए गए थे. संग्रहालय के रजिस्टर में सात दिसंबर, 1874 की प्रविष्टि के अनुसार तीन नक्काशीदार पत्थरों को 1874 में जान बिर्कमायर विंगेट, 9- विंडसर टेरेस द्वारा संग्रहालय को उपहार में दिया गया था. बिहार के पटना जिले से सूर्यदेव की मूर्ति भी वापस आई है.
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