Muslim Man Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में इस्लाम में महिलाओं के लिए हिजाब की गैर-अनिवार्यता का दावा करने वाली एक याचिका दायर की गई है. इस याचिका में कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले की शुद्धता को इंगित करने का प्रयास किया गया, जिसने राज्य में कॉलेजों में सिर ढकने पर प्रतिबंध लगाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों के अधिकार को बरकरार रखा था. इस हस्तक्षेप याचिका को भारतीय सशस्त्र बलों के एक पूर्व अधिकारी सैयद हबीब-उर-रहमान द्वारा दायर किया गया है जो 37 साल तक आईटीसी की सेवा कर रहे हैं और इसके निदेशक मंडल में भी नियुक्त किए जा रहे हैं.


रहमान ने अधिवक्ता जय अनंत देहद्राई द्वारा प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा पवित्र पुस्तक की 'घोर और विकृत गलत व्याख्याओं' की निंदा की है.  इस संदर्भ में वह अपने सालों के अनुभव, ज्ञान और इस्लाम के व्यावहारिक और व्यापक समझ को सामने रखना चाहते हैं. इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा: "आवेदक एक धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील मुस्लिम है जो इस्लाम की भावना को देख रहा है. जो इस अदालत के ध्यान में लाना चाहता है कि अपने 80 सालों में उसने कभी भी अपनी दादाजी, चाची, मां या बहनें जो सभी इस्लाम की भावना का पालन करती हैं को सिर पर स्कार्फ पहनते नहीं देखा."


इसके साथ ही रहमान ने कहा कि वह इस झूठी धारणा को दूर करने के लिए पवित्र पुस्तक की सही धार्मिक व्याख्या के साथ शीर्ष अदालत की सहायता करना चाहते हैं. जिसमें हिजाब पहनने का अनिवार्य निर्देश है. इस याचिका के अनुसार यह विचार कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है वह अज्ञानी और कट्टरपंथी संस्थाओं का परिणाम है. जो महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने का एक आवश्यक होने का दावा करके पवित्र पुस्तक की एक अत्यंत पिछड़ी और प्रतिगामी गलत व्याख्या को गलत तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं."


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कुरानिक पाठ स्पष्ट करता है कि स्कार्फ या हिजाब पहनना इस्लामी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसलिए अपीलकर्ता छात्राओं के लिए सामूहिक दिशा का दावा नहीं कर सकते हैं, इस दावे पर कि यह मुस्लिम छात्र के धर्म के अधिकार का हनन करता है.


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