Delhi News: दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना (Vinai Kumar Saxena) के एक फैसले से राजनिवास और आप सरकार (ARvind Kejriwal) के बीच एक बार फिर तनातनी चरम पर पहुंच गया है. इस बार एलजी के आदेश पर आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा विभिन्न विभागों में नियुक्त 400 विशेषज्ञों की सेवाएं समाप्त कर दी गई है. इस फैसले से एलजी और सत्तारूढ़ आप के बीच टकराव बढ़ने की आशंका है. एलीजी कार्यालय ने एक बयान जारी कर आरोप लगाया है कि ये विशेषज्ञ गैर पारदर्शी तरीके और सक्षम प्राधिकारी की अनिवार्य मंजूरी के बिना नियुक्त किए गए थे.


राजभवन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि विशेषज्ञों की नियुक्तियों में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा निर्धारित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य आरक्षण नीति का भी पालन नहीं किया गया. सेवा से निकाले गए इन विशेषज्ञों को विभिन्न विभागों और एजेंसियों में फेलो सलाहकार, उप सलाहकार और विशेषज्ञ वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी व सलाहकार आदि के रूप में नियुक्त किया गया था. राजनिवास के आदेश पर दिल्ली सरकार सेवा विभाग ने भी सहमति व्यक्त की है.


LG का आदेश संविधान विरुद्ध


दूसरी ओर दिल्ली के उपराज्‍यपाल विनय सक्सेना के इस फैसले के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार ने पलटवार किया है. दिल्ली सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उपराज्‍यपाल के पास ऐसा करने का अधिकार ही नहीं है. वह गैरकानूनी और संविधान के विरुद्ध काम कर रहे हैं. एलजी का मकसद आप सरकार को पंगु बनाना है.  इस मकसद को हासिल करने के लिए वह रोजाना नए तरीके ढूंढते रहते हैं. ताकि दिल्ली के लोगों को परेशानी हो. आप सरकार की ओर से जारी बयान में कहा है कि यह लोग आईआईएम अहमदाबाद, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, एनएएलएसएआर, जेएनयू, एनआईटी, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, कैम्ब्रिज आदि जैसे शीर्ष कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से थे. ये लोग विभिन्न विभागों में शानदार काम कर रहे थे. इन्‍हें उचित प्रक्रिया और प्रशासनिक मानदंडों का पालन करते हुए काम पर रखा गया था.


अदालत में देंगे चुनौती


आम आदमी पार्टी सरकार ने आरोप लगाया है कि उपराज्‍यपाल दिल्ली को बर्बाद करने पर तुले हैं. 400 प्रतिभाशाली युवा पेशेवरों को केवल इसलिए सजा देने का फैसला लिया गया क्योंकि उन्होंने दिल्ली सरकार के साथ जुड़ने का फैसला किया. उपराज्‍यपाल ने फैसले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया. एक भी कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया और किसी भी स्तर पर कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया. इस असंवैधानिक फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी. 


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