Delhi: अब लावारिस शवों की पहचान होगी आसान, AIIMS बना रहा है DNA प्रोफालिंग डाटाबेस, जानिए क्या है ये प्रोजेक्ट
दिल्ली के एम्स अस्पताल ने अज्ञात और लावारिस शवों का डीएनए डाटाबेस बनाने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया. इसके तहत अब तक 414 से अधिक अज्ञात/लापता व्यक्तियों का डेटाबेस तैयार किया जा चुका है.
Delhi: 23 जनवरी, 2020 को दिल्ली पुलिस (Delhi Police) को नेहरू प्लेस (Nehru Place) में एक 55 वर्षीय व्यक्ति बेहोश पड़ा मिला था. उन्हें एम्स (AIIMS) ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इसके बाद पुलिस ने मृतक के परिवार के बारे में पता लगाने की काफी कोशिश की और यहां तक कि उसकी शारीरिक बनावट और उस दिन उसने क्या पहना था, इसके बारे में डिटेल्स भी प्रकाशित कराई, लेकिन कोई भी एक सप्ताह तक बॉडी पर दावा करने के लिए आगे नहीं आया. आखिर में पुलिस ने मृतक का पोस्टमॉर्टम (Postmortem) कराया और व्यक्ति का अंतिम संस्कार (Cremation) किया.
अज्ञात शवों की पहचान के लिए एम्स चला रहा है डीएनए डेटाबेस प्रोजेक्ट
वहीं एक महीने बाद, 20 साल की एक महिला ने पुलिस से संपर्क किया और दावा किया कि मृतक उसका पिता था, लेकिन उसे यकीन नहीं था क्योंकि वह सालों से उसके संपर्क में नहीं थी. हालांकि महिला इस मामले में लकी निकली. दरअसल एम्स अस्पताल द्वारा पोस्टमार्टम के लिए संस्थान में लाए गए सभी लापता या अज्ञात लोगों के डीएनए डेटाबेस (DNA Database) बनाने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट (Pilot Project) चलाया जा रहा है. इस कारण एम्स ने उस व्यक्ति की प्रोफ़ाइल को भी स्टोर किया था. जब उसके डीएनए को महिला के डीएनए से मैच किया गया, तो पता चला कि 'अज्ञात' घोषित किया गया व्यक्ति वास्तव में उसका पिता था.
टीओआई में छपी रिपोर्ट के मुताबिक एम्स के फोरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ सुधीर गुप्ता ने बताया, "इस खुलासे के बाद महिला को यकीन हुआ कि उसके पिता इस दुनिया में नहीं रहे. वरना वो इसी कशमकश मे रहती कि क्या उसके पिता जीवित हैं या नहीं."उन्होंने बताया कि ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं.
एम्स ने 414 से अधिक अज्ञात/लापता व्यक्तियों का डेटाबेस तैयार किया है
गौरतलब है कि एम्स ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के सहयोग से UMID (Unidentified bodies and missing persons identification and DNA database) नाम से एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है. अब तक, इसके तहत 414 से अधिक अज्ञात/लापता व्यक्तियों का डेटाबेस तैयार किया है. प्रोजेक्ट के एडिशनल प्रोफेसर और प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर डॉ चितरंजन बेहरा ने कहा कि इसका उद्देश्य देश के सभी मुर्दाघरों में एक समान डीएनए डेटाबेस बनाना है.
बता दे कि एक लावारिस/अज्ञात शरीर का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिस पर 48 घंटों के भीतर करीबी रिश्तेदारों या निजी मित्रों द्वारा दावा नहीं किया गया हो. आमतौर पर पुलिस इन शवों का 72 घंटे के बाद अंतिम संस्कार करती है. डॉ बेहरा ने कहा कि देश में हर साल औसतन लगभग 40,000 शव लावारिस/अज्ञात हो जाते हैं. एम्स दिल्ली हर साल लगभग 1,700 ऑटोप्सी आयोजित करता है. इसमें डॉक्टरों का कहना है कि 150-200 मामले अज्ञात शवों के हैं.
डीएनए डेटाबेस बॉडी की पहचान करने में करता है मदद
डॉ बेहरा कहते है कि, कभी-कभी पुलिस द्वारा नोट की गई शारीरिक बनावट या विशेषताओं से किसी बॉडी की पहचान करना मुश्किल होता है. एक डीएनए डेटाबेस इसमें मदद कर सकता है. एम्स ने एक पोर्टल बनाया है जहां फेनोटाइप (ऊंचाई, चेहरे की विशेषताएं, बालों का रंग), फोटोग्राफ, टैटू और निशान के बारे में डिटेल्स अपलोड किए जाते हैं. परिवार जांच अधिकारियों या अस्पताल से संपर्क कर सकते हैं
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