Delhi AIIMS: आज समाज में हर कोई कहीं न कहीं किसी प्रकार से दान देने का कार्य करते रहते हैं. लेकिन आपको पता है इस संसार में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण दान 'अंगदान' है. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे एक मृत व्यक्ति से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है. ऐसा ही एक मामला दिल्ली के एम्स अस्पताल में आया है, जिसमें एक 30 साल के शख्स ने अपने अंगों को दान कर 4 लोगों की जिंदगियां बचाई हैं.


उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अपने परिवार के साथ रहने वाले संतोष कुमार को बीते 7 अक्टूबर को एक हादसे में काफी चोट आई थी. हादसे के तुरंत बाद उन्हें पास के एक अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया. डॉक्टरों की ओर से इलाज के दौरान उनकी लगातार गंभीर होती हालत को देख बेहतर उपचार के लिए दिल्ली के एम्स ट्रामा में रेफर कर दिया. एम्स ट्रामा सेंटर में लगातार डॉक्टरों की टीम की ओर से बेहतर से बेहतर ट्रीटमेंट देने के बाद भी उसकी जान नही बचाई जा सकी और आखिरकार 14 अक्टूबर को उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया.


अस्पताल की ओर से परिजनों के समाझाया गया


एम्स की डॉ. आरती विज ने कहा की अस्पताल की ओर से इस तरह से हुई मौत के बाद (ORBO) ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन ने मृतक के परिवार को अंगदान से कैसे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है, यह समझाया गया. साथ ही मृत संतोष के परिजन को लगातार अस्पताल की टीम इस पूरे प्रोसेस के बारे में अलग-अलग एंगल और कई दूसरे लोगों के उदाहरण को देते हुए सारी बात बताई गई. इसमें काफी समय लगा पर वे इस प्रोसेस के लिए राजी हो गए.


मृतक के चाचा ऋषिचंद्र ने क्या कहा?


इसकते बाद बाद डॉक्टरों की टीम ने संतोष के दिल, लिवर और किडनी को एम्स अस्पताल के अंग प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे लोगों को दान किया गया, जबकि दूसरी किडनी को दूसरे अस्पताल राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती एक मरीज में प्रत्यारोपित किया गया. अपने भतीजे की अचानक हुई मौत पर मृतक के चाचा ऋषिचंद्र ने कहा कि हमारा बेटा भले ही इस दुनिया में नहीं रहा पर वो जाते-जाते कई लोगों को जिंदगी दे गया. वो हमारे साथ भले ही नहीं है लेकिन खुशी है कि अब हमेशा उनलोगों के जरिए जीवित रहेगा, जिन्हें संतोष के अंगदान से जीवन मिला है.


संतोष ने ग्रेजुएशन तक की थी पढ़ाई 


ऋषिचंद्र ने आगे कहा कि इस तरह सभी लोगों को अंगदान करने पर विचार करना चाहिए, क्योंकि आपके परिजन तो इस दुनिया को छोड़ जा चुके हैं, लेकिन आपका फैसला जो काफी कष्टदायक है, अगर कोशिश की जाए तो कई घरों को फिर से रोशन करने का काम करते हैं. ऋषिचंद्र ने आगे बताया कि मेरा भतीजा (मृत संतोष) काफी सीधे और ईमानदार व्यक्ति थे. उन्होंने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की थी और खेती कर अपने परिवार का गुजारा किया करते थे. मृत संतोष अपने दोनों बच्चों के साथ अलीगढ़ में ही रह रहे थे.


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