Delhi News: भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है. जहां कई तरह की वेशभूषा, परंपरा और व्यंजनों का अपना अमूल्य इतिहास रहा है. भारत की विविधताओं में एक व्यंजन जिसका नाम, विरंज है. विरंज को प्राचीन काल में सूपर फूड का दर्जा मिला हुआ था. विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके इस बेहतरीन व्यंजन का संबंध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से जुड़ा हुआ है.
चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में इसे बेहद खास मौकों पर ही बनाया जाता था. यही कारण है कि मगध के क्षेत्रों गया, जहानाबाद, अरवल जैसी जगहों पर आज भी शादी जैसे खास समारोह इस व्यंजन को बनाया जाता है.
व्यंजन का इतिहास काफी पुराना
इस व्यंजन को लेकर कहा जाता है कि ये एक प्राचीन भारतीय व्यंजन है, जिसका इतिहास कोई 100 या 200 साल पुराना नहीं बल्कि 2000 ईसा-पूर्व से उसका नाता है. आज यह भारतीय व्यंजन पश्चिमी देशों के खान-पान और भागदौड़ से भरे जीवन में लगभग विलुप्त होने की कगार पर है. इस व्यंजन का महत्व इसके स्वाद में होने के साथ-साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी है. इस व्यंजन को बनने में काफी समय लगता है इसी वजह से ये किसी खास मौके पर ही बनाया जाता था.
सम्राट चंद्रगुप्त की सेना के लिए विशेष तौर पर बनता था विरंज
बिहार के चर्चित स्थल मगध के अरवल से आए रसोइया कविन्दर शर्मा ने इस विरंज के बारे में विस्तार से बताया है. उन्होंने बताया कि विरंज में चावल कई तरह के मेवे, देसी घी और 20 तरह के विशेष फूलों से मिलाकर बनाया जाता है. इसकी खास बात ये है कि जो इसे एक बार खा लेता है उसे दो दिनों तक कुछ भी खाने की जरूरत नहीं पड़ती. यही वजह है कि इसे प्राचीन काल का सुपर फूड भी कहा जाता था. सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में विरंज खास मौकों पर बनाया जाता था.
विलुप्ति की कगार पर पहुंचा यह प्राचीन सुपर फ़ूड
विरंज बेहद ऊर्जा देने वाला व्यंजन है. स्वर्णिम इतिहास के बावजूद आज के समय में ये भारतीय व्यंजन विलुप्त होने की कगार पर है. इसे बचाने के लिए हमें आज की पीढ़ी को इस प्राचीन सूपर फूड के बारे में बताने के लिए और भारत की अमूल्य संस्कृति से जोड़ने के लिए दिल्ली के द्वारका इलाके में विरंज महोत्सव का आयोजन किया गया है. इस महोत्सव के माध्यम से दिल्ली में रह रहे मगधियों को एकजुट करने की कोशिश भी की जा रही है.
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