National Family Health Survey-5: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार देश के बच्चों और महिलाओं के शरीर में खून की कमी यानी एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है. 14 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आधी से अधिक महिलाओं और बच्चों में खून की कमी है. इस मामले में हिंदी भाषी प्रदेशों के हालात काफी खराब दिख रहे हैं. भारत एवं 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य विषयों के प्रमुख संकेतकों से जुड़े आंकड़े बुधवार को सरकार द्वारा 2019-21 एनएफएचएस -5 के चरण दो के तहत जारी किए गए.


स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि इस चरण में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं. राष्ट्रीय स्तर पर, महिलाओं और बच्चों में एनीमिया के मामले 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समान ही रहे. राष्ट्रीय स्तर के तथ्यों की गणना एनएचएफएस-5 के पहले चरण और दूसरे चरण के आंकड़ों का उपयोग करके की गई.


इसमें कहा गया है, "बच्चों और महिलाओं में एनीमिया अब भी चिंता का विषय बना हुआ है. चरण दो में शामिल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और अखिल भारतीय स्तर पर एनएफएचएस -4 की तुलना में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं (गर्भवती महिलाओं सहित) खून की कमी से पीड़ित हैं, जबकि 180 दिनों या उससे अधिक समय की गर्भवती महिलाओं द्वारा आयरन, फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हुई है."


बच्चों और महिलाओं में खून की कमी के मामलों में हुई बढ़ोतरी


एनएफएचएस- 4 की तुलना में एनएफएचएस- 5 के दूसरे चरण में राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों और महिलाओं में खून की कमी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. एनएफएचएस- 4  में 6 से 59 महीने की आयु वर्ग के 58.6 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी थी, जो अब बढ़कर एनएफएचएस- 5 में 67.1 प्रतिशत हो गया है. इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 68.3 प्रतिशत जबकि शहरी क्षेत्रों के 64.2 प्रतिशत मामले हैं.


वहीं राज्यों की बात करें तो मध्य प्रदेश में 68.9 से बढ़कर 72.7, पंजाब में 56.6 से 71.1, राजस्थान में 60.3 से 71.5, हरियाणा में थोड़ा घटकर 71.7 से 70.4 झराखंड में भी थोड़ी से कमी के साथ 69.9 से 67.5 हो गया है. 15 से 19 साल की लड़कियों में भी खून कमी के मामले बढ़े हैं. एनएफएचएस- 4 में ये आंकड़ा 54.1 प्रतिशत था जो अब 59.1 प्रतिशत हो गया है. इसमे ग्रामीण क्षेत्रों में 58.7 प्रतिशत जबकि शहरी क्षेत्रों में 54.1 प्रतिशत है. दूसरी तरफ 15 से 49 साल की आयु वर्ग की महिलाओं का प्रतिशत 50.4 से बढ़कर 52.2 हो गया है. बच्चों और महिलाओं की तुलना में पुरुषों के प्रतिशत में कमी है. 15 से 16 आयु वर्ग के 31.1 प्रतिशत पुरुषों में और 15 से 49 आयु वर्ग के 25 प्रतिशत पुरुषों में ही खून की कमी है.


पहले चरण में शामिल 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एनएफएचएस-5 के तथ्य दिसंबर, 2020 में जारी किए गए थे. सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, बाल पोषण संकेतकों में अखिल भारतीय स्तर पर थोड़ा सुधार दिखा है. बयान में कहा गया है कि दोनों चरणों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, बाल पोषण की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन यह बदलाव महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि इन संकेतकों में बहुत कम समय में व्यापक बदलाव होने की संभावना नहीं है.


स्तनपान के मामले में हुआ सुधार


छह महीने से कम उम्र के बच्चों को विशेष रूप से स्तनपान के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर सुधार हुआ है और 2015-16 में यह 55 प्रतिशत था जो 2019-21 में बढ़कर 64 प्रतिशत तक पहुंच गया. दूसरे चरण में शामिल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खासी प्रगति दिखी है. बयान में कहा गया है कि अखिल भारतीय स्तर पर संस्थागत जन्म दर 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गयी हैं. पुडुचेरी और तमिलनाडु में संस्थागत प्रसव 100 प्रतिशत है वहीं चरण दो के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह 90 प्रतिशत से अधिक है. इसमें कहा गया है कि खासकर निजी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव में वृद्धि होने के साथ ही कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ‘सी-सेक्शन’ (सीजेरियन) प्रसव में भी काफी वृद्धि हुई है.