किसी की आंखों में आंसू, कोई अपने गांव की मीठी यादों में डूबा हुआ, किसी को याद आता अपना वो पहला प्यार तो कोई भीगी आंखों से 60 साल की उम्र में अपने बचपन का एहसास कर रहा था... दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रविवार की शाम ऐसे तमाम इमोशन देखने को मिले. यहां 'अनुभूति उत्तराखंड' नाम से एक इवेंट का आयोजन किया गया, जिसे देखने उत्तराखंड के हजारों लोग यहां पहुंचे थे. 


इस इवेंट में उत्तराखंड के लोगों के लिए काफी कुछ खास था, यही वजह थी कि इवेंट शुरू होने के चार दिन पहले ही सारे टिकट बिक चुके थे. राजधानी दिल्ली में पहाड़ों का ऐसा इवेंट शायद ही कभी हुआ हो. इवेंट में उत्तराखंड के म्यूजिक को नई जान या यूं कहें कि संजीवनी देने वाले 'पांडवाज' का जादू था. वहीं राहुल रावत के डायरेक्शन में बनी उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म 'सुनपट' ने पलायन के दर्द को कुछ इस तरह बयां किया कि ऑडिटोरियम में मौजूद हर किसी तक पहाड़ के दर्द की आह पहुंच गई. 


एंट्री गेट पर दिखा लोगों का हुजूम
जब हम इवेंट में पहुंचे तो ऑडिटोरियम के बाहर हजारों की संख्या में लोग दिखे. एंट्री गेट पर लंबी कतार लगी हुई थी, लोग आपस में गढ़वाली-कुमाऊंनी में बातचीत कर रहे थे. अंदर जाने के लिए बेसब्र बुजुर्ग वॉलेंटियर्स से पहाड़ी भाषा में दरख्वास्त कर रहे थे, जिसके बाद उनकी मीठी रिक्वेस्ट मान ली गई और सबसे पहले बुजुर्गों को अंदर भेजा गया. इसी कतार में उत्तराखंड के जोशीले युवा भी मौजूद थे, जिन्होंने गेट के बाहर से ही पूरा माहौल बनाना शुरू कर दिया. 


अंदर पहुंचने पर हमने देखा कि पहले से ही लोग सीटों पर डटे हुए थे, इवेंट शुरू होने से पहले ही लगभग पूरा ऑडिटोरियम भर चुका था. देखते ही देखते पूरा हॉल लोगों से खचाखच भर गया, कोई अपने दादा-दादी को यहां लेकर आया था तो कोई नई पीढ़ी के अपने बच्चों को उत्तराखंड की झलक दिखाने इवेंट में पहुंचे थे. 


प्रसून जोशी को याद आया पहाड़ वाला बचपन
इवेंट की शुरुआत मशहूर फिल्म लेखक और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के चेयरपर्सन प्रसून जोशी के नाम से हुई. अनाउंस किया गया कि प्रसून जोशी शो में पहुंच चुके हैं. कुछ ही देर बाद उन्हें मंच पर बुलाया गया और जब उन्होंने उत्तराखंड के अपने किस्से लोगों के साथ शेयर किए तो गर्व से लोग तालियां बजाने पर मजबूर हो गए. प्रसून जोशी ने अपना आधा बचपन उत्तराखंड के अल्मोड़ा में बिताया है. इसे याद करते हुए उन्होंने बताया कि जब हम बस से अपने गांव जाते थे तो जैसे ही पहाड़ दिखने शुरू होते थे, ऐसा लगता था कि बैकग्राउंड म्यूजिक शुरू हो गया है और फिल्म आपकी आंखों के सामने चलने लगती थी. 


प्रसून जोशी ने अनुभूति उत्तराखंड में कहा कि, पहाड़ या उत्तराखंड अभी उस जगह नहीं पहुंचा है जहां हम गर्व कह सकें कि यहां के सब लोग अच्छा कर रहे हैं. बहुत जरूरत है कि प्रतिभा वाले फिल्म बनाएं, हिम्मत वाले नहीं. जोशी ने कहा कि हम उत्तराखंड के लोग किसी खिड़की के गमले की तरह नहीं रह सकते हैं, हम आंगन का वो पेड़ हैं जिसे ताकत अपनी जमीन से मिलती है. इसीलिए पहाड़ के लोग देश-विदेश कहीं भी चले जाएं उनकी जड़ें हमेशा उनके आंगन में ही रहती हैं. 


इस दौरान प्रसून जोशी के अलावा उत्तराखंड की शान के तौर पर मशहूर आईएएस अधिकारी मंगेश घिल्डियाल भी यहां मौजूद थे. जिन्हें पीएम मोदी ने बड़ी जिम्मेदारी देते हुए पीएमओ में अंडर सेक्रेट्री के पद पर नियुक्त किया. मंगेश पहले रुद्रप्रयाग के डीएम के तौर पर कार्यरत थे. मंगेश के संघर्ष की कहानी कुछ ऐसी है कि वो आज उत्तराखंड के लाखों युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं. 


'सुनपट' ने किया सोचने पर मजबूर
प्रसून जोशी और मंगेश घिल्डियाल के बाद मंच पर उत्तराखंड के युवा कलाकार दिग्विजय सिंह आए और उन्होंने अपने जोशीले गानों से पूरे ऑडिटोरियम में आग सी लगा दी. लेकिन इस जोश के बाद होश की बारी आई, यानी फिल्म सुनपट की स्क्रीनिंग की बारी थी. फिल्म की खासियत ये थी कि इसमें किसी भी प्रोफेशनल एक्टर ने काम नहीं किया था, इसके किरदार गांव के दो बच्चे और महिला थी, जिनके इर्द-गिर्द पूरी कहानी घूमती थी. ये उत्तराखंड की पहली ऐसी फिल्म है, जो इंटरनेशन फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया तक पहुंची है. यहां पहली बार लोगों को इसे दिखाया गया. 'सुनपट' का मतलब खालीपन होता है.


फिल्म के शुरू होते ही दोनों बच्चों की जुगलबंदी और ठेठ पहाड़ी लहजे से लोगों ने जमकर ठहाके लगाए. लेकिन जैसे ही ये शॉर्ट फिल्म आगे बढ़ी, उसने ऑडिटोरियम में मौजूद हजारों लोगों को गंभीर कर दिया. इस पूरी फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे पलायन पहाड़ को निगल रहा है और इससे न सिर्फ गांव खाली हो रहे हैं, बल्कि ठेठ पहाड़ीपन, गांव का वो बचपन, जमीन, जंगल और नदियों का पानी भी तरस रहा है. राहुल रावत की इस फिल्म को उत्तराखंड के पौड़ी जिले के बीरोंखाल में शूट किया गया है. 


फिल्म खत्म होते ही सब हुए 'सुनपट' 
फिल्म खत्म हो चुकी थी और लोगों की आंखों में आंसू थे, हजारों की भीड़ के बावजूद पूरे ऑडिटोरियम में सन्नाटा छा गया था. मजबूरन रोजगार के लिए पलायन करके शहरों में आए लोग पहाड़ के इस दर्द को जी रहे थे और अपने गांव के खालीपन यानी 'सुनपट' को अच्छी तरह से महसूस कर रहे थे. एंकर की आवाज ने इस सन्नाटे तो तोड़ने का काम किया और इसके बाद मैंने भी पूरे ऑडिटोरियम में नजर घुमाई, ज्यादातर लोग रुमाल या हाथ से अपनी आंखों में आए पानी को साफ कर रहे थे. उसी वक्त समझ आ गया कि वाकई में ये कोई इवेंट नहीं बल्कि इन तमाम लोगों के लिए एक इमोशन है. फिल्म देखने के बाद कोई भी कुर्सी पर नहीं बैठ पाया और सभी ने खड़े होकर तालियों से इसकी तारीफ की. 


सिर चढ़कर बोला पांडवाज का जादू
इसके बाद हर किसी को इंतजार था पहाड़ के डायनैमिक म्यूजिक ग्रुप पांडवाज का... जैसे ही पांडवाज का नाम अनाउंस हुआ, पूरा माहौल ही बदल गया. तालियों की गूंज ऐसी थी कि मानो लोग बस इसी पल का इंतजार कर रहे हों. दरअसल पांडवाज रुद्रप्रयाग में रहने वाले तीन भाइयों - ईशान डोभाल, कुनाल डोभाल और सलिल डोभाल का बनाया एक म्यूजिकल ग्रुप है. जिसने पिछले महज 10 सालों में अपना ऐसा जादू चलाया है कि हर किसी की जुबां पर उनका नाम होता है. खासतौर पर युवाओं में पांडवाज का काफी ज्यादा क्रेज है.


पांडवाज ने जान्दुरी रुपाणी, मेरी गजिणा, तिलगा, वींथै पते ना, म्वारी और लैंगु पड़िगै मैंगु जैसे एक के बाद एक कई शानदार पहाड़ी गानों से पूरा समां बांध दिया. लोग इन गानों पर जमकर झूमे... इसके बाद पांडवाज के सबसे हिट एलबम टाइम मशीन की बारी थी, जिसने देश ही नहीं दुनिया में भी अपना जादू बिखेरा है. इसमें घुघूती बसूती और हेजी सारयूं में फूली गे ह्वेली... गानों ने दिल्ली के ऑडिटोरियम में बैठे लोगों को सीधे अपने गांवों तक पहुंचा दिया. 


जागर बजते ही थिरकने लगा पूरा ऑडिटोरियम
पांडवाज की इस धमाकेदार परफॉर्मेंस के बीच सिंगिंग शो दिल है हिंदुस्तानी में अपनी आवाज का दम दिखाने वाले उत्तराखंडी सिंगर संकल्प खेतवाल मंच पर आए. उन्होंने अपने गाने मठु-मठु से लोगों को झूमने पर मजबूर किया. उनके इस गाने के बाद फिर से पांडवाज ने मंच संभाला और आखिर में जागर की बारी आई. कहीं पर जागर बज रहे हों और पहाड़ी नाचें नहीं, ऐसा भला कैसे हो सकता था. पांडवाज ने जैसे ही जागर शुरू किए लोग अपनी कुर्सी छोड़कर मंच के पास आ गए और सब कुछ भूलकर नाचने लगे. नाचने वालों में हर उम्र के लोग थे, बच्चों से लेकर बूढ़े तक इस दौरान जमकर नाचे. जिन्हें जगह नहीं मिली, वो अपनी जगह पर ही खड़े होकर नाचने लगे. कई मिनट तक जागरों पर नाचने के बाद युवाओं ने अपने पसंदीदा कलाकारों से मुलाकात की और सेल्फी का दौर भी खूब चला. इस तरह इस इमोशन भरे इवेंट अनुभूति उत्तराखंड का समापन हुआ.