Delhi Ordinance Row: केंद्र के अध्यादेश पर केजरीवाल को मिला कांग्रेस का साथ! सोनिया गांधी के आवास पर चल रही है बड़ी बैठक
पटना में हुई विपक्षी एकजुटता की मीटिंग में कांग्रेस ने केंद्र के अध्यादेश को लेकर अपना रुख सार्वजनिक नहीं किया था. उस वक्त अरविंद केजरीवाल भी नाराजगी जताते हुए बैठक के बाद बिना कोई बयान दिए चले गए थे.
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Delhi News: देश की राजधानी दिल्ली से इस वक्त की बड़ी खबर सामने आ रही है. सूत्रों से जानकारी मिली है कि केंद्र के अध्यादेश (Delhi Ordinance) पर आम आदमी पार्टी (AAP) को कांग्रेस (Congress) का समर्थन मिल गया है. इस संबंध में कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर एक बड़ी बैठक चल रही है. जिसके बाद कांग्रेस की तरह से अध्यादेश के मुद्दे पर रुख सार्वजनिक किया जा सकता है.
सूत्रों का कहना है कि संसद में ये अध्यादेश का मुद्दा आने पर कांग्रेस आप और अन्य पार्टियों के साथ खड़ी होगी. बता दें कि, पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद आम आदमी पार्टी की ओर से बड़ा बयान आया था. पार्टी ने कांग्रेस पर बीजेपी के साथ मिले होने का आरोप लगाया था. आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया था कि केंद्र की ओर से लाए गए अध्यादेश के मामले पर बीजेपी और कांग्रेस में साठगांठ हुई है.
केजरीवाल ने लगाए थे आरोप
केजरीवाल ने कहा था कि, असंवैधानिक अध्यादेश के जरिए दिल्ली के लोगों और दिल्ली सरकार का अधिकार छीना गया है. कांग्रेस को इतना समय क्यों लग रहा है? कांग्रेस को अपना स्टैंड स्पष्ट करना चाहिए कि वो संविधान के साथ खड़े हैं या बीजेपी के? दरअसल, दिल्ली सीएम केजरीवाल केंद्र के लाए अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन मांग रहे हैं. अगर राज्यसभा में सीएम केजरीवाल को विपक्षी दलों का समर्थन मिलता है तो केंद्र के अध्यादेश को कानून बनने से रोका जा सकता है. इसी एजेंडे को लेकर सीएम केजरीवाल पटना में हो रही विपक्षी दलों की बैठक में भी पहुंचे थे
जानें क्या है पूरा मामला?
केंद्र सरकार ने बीते महीने दानिक्स कैडर के ग्रुप-ए अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के उद्देश्य से एक अध्यादेश जारी किया था. दिल्ली की आप सरकार इसका विरोध कर रही है और इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बताया है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस अध्यादेश के आने से पहले दिल्ली में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया था.
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