Arvind Kejriwal Guarantees: आम आदमी पार्टी (AAP) ने लोकसभा चुनाव के लिए 10 गारंटियां जारी की हैं. सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने रविवार को देश के सामने पार्टी की जो गारंटियां रखी हैं उनमें दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का वादा भी शामिल है. सीएम केजरीवाल ने कहा कि केंद्र में इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) की सरकार बनाने पर वह दिल्ली को पूर्ण राज्य (Full Statehood) का दर्जा दिलाएंगे.


दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग अक्सर उठती रहती है. अपने नौ साल के कार्यकाल में सीएम केजरीवाल ने इसकी मांग कई बार की है. इस मांग के पीछे सबसे बड़ी वजह दिल्ली में कार्य़ करने की पूरी आजादी और अधिकार है. केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण केंद्र और दिल्ली  सरकार के बीच अधिकार बंटे हुए हैं. अक्सर ही केंद्र और दिल्ली के बीच टकराहट की स्थिति रहती है. मौजूदा आप सरकार में भी यह देखा गया है जब उपराज्यपाल और सीएम केजरीवाल के बीच तनातनी की स्थिति बनी हुई है. 


दिल्ली में 1952 में पहली बार बनी सरकार
दिल्ली में सबसे पहले 1952 में चुनाव हुआ. कांग्रेस की सरकार बनी और चौधरी ब्रह्म प्रकाश सीएम बनाए गए. तब भी अधिकारियों को लेकर सीएम और चीफ कमिश्नर के बीच टकराहट होती रही. टकराहट की स्थिति को देखते हुए 1956 में विधानसभा भंग कर दिया गया. दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. यहां चुनाव का अधिकार समाप्त कर दिया गया.  इस फैसले का विरोध हुआ. 1957 में दिल्ली में नगर निगम का गठन किया गया.


इसके बाद 1966 में दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट पास किया. यहां मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन हुआ. लेकिन यह भी स्थानीय लोगों की आकांक्षा पर खरी नहीं उतरी. 1977 में जनसंघ और जनता पार्टी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की. इसको लेकर प्रस्ताव भी केंद्र को भेजे. यहां तक कांग्रेस ने भी समर्थन किया. 


बीजेपी भी उठाती रही है यह मांग
80 के दशक में बीजेपी ने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की. बीजेपी के मदन लाल खुराना, वीके मल्होत्रा और साहिब सिंह वर्मा इस मुद्दे को बार-बार उठाते रहे. हालांकि संविधान में संशोधन के बाद 1991 में दिल्ली को अपनी विधानसभा मिली. यह 69 संशोधन था जिससे दिल्ली के स्टेटस में बदलाव किया गया. 1993 में बीजेपी की सरकार बनी तो इसने पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की. लेकिन उस वक्त भी केंद्र की कांग्रेस सरकार और दिल्ली सरकार में इस मांग को लेकर टकराहट की  स्थिति बनी रही. 1998 में तो पूर्ण राज्य का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया था.


2014 के बाद बीजेपी के रुख में आया बदलाव
इसमें केंद्र और राज्य की शक्तियों का जिक्र था. 2003 में दिल्ली बिल 2003 तत्कालीन केंद्र की बीजेपी सरकार ने संसद में पेश किया जिसमें पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात थी. बीजेपी 2014 तक इसकी मांग करती रही लेकिन फिर केंद्र में सरकार बनने के बाद अपनी ही मांग ठंडे बस्ते में डाल दी. फिर 2015 में आप की  सरकार आने पर दोबारा से मांग शुरू हुई.


पूर्ण राज्य से मिलने वाला फायदा
केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली सरकार के पास कई अधिकार नहीं हैं जैसे कि पुलिस, सार्वजनिक कानून-व्यवस्था और भूमि उसके नियंत्रण से बाहर हैं. इसके अलावा कई ऐसे विषय हैं जो केंद्र के अधीन हैं. यह दावा किया जाता है कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त होगी. मंत्रियों की संख्या बढ़ेगी. 


पूर्ण राज्य का दर्जा न देने के पीछे यह कारण
दिल्ली देश की राजधानी है. यहां संसद भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन और विभिन्न देशों के दूतावास मौजूद हैं. दिल्ली पुलिस राज्य के अधीन होने पर उनकी सुरक्षा की चुनौती पैदा हो सकती है. राज्य सरकार के अधीन कई विभाग होने से कर्मचारियों का भुगतान उसे खुद करना होगा जिसका भुगतान अभी केंद्र सरकार करती है. ऐसे में दिल्ली के राजस्व पर भार बढ़ेगा. इसके अलावा कई ऐसी तकनीकी दिक्कतें हैं जो पूर्ण राज्य के लिए रोड़ा बन रही हैं.


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