ASI ने जामा मस्जिद से जुड़े मसले पर दिल्ली HC में रखा पक्ष, जानें पूर्व PM ने क्या कहा था?
Jama Masjid Delhi: एएसआई का पक्ष जानने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि अगर जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत का दर्जा नहीं दिया जाता है, तो भी इससे अर्जित राजस्व निजी व्यक्ति के पास नहीं जा सकता.
Delhi Jama Masjid News: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि ऐतिहासिक जामा मस्जिद को ‘संरक्षित स्मारक’ घोषित करने का ‘व्यापक प्रभाव’ पड़ेगा. इस संबंध में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. इस मुद्दे से जुड़ी जनहित याचिकाओं के जवाब में दायर हलफनामे में एएसआई ने कहा कि एक बार जब किसी स्मारक को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया जाता है, तो उसके आसपास के क्षेत्र में कुछ नियम और निषेध लागू हो जाते हैं.
एएसआई ने कहा कि मुगलकालीन जामा मस्जिद मौजूदा समय में भले ही दिल्ली वक्फ बोर्ड के संरक्षण में है, लेकिन वहां रक्षण और संरक्षण का काम एएसआई कर रहा है. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि वह एएसआई के रुख को देखते हुए जामा मस्जिद को ‘संरक्षित स्मारक’ घोषित करने की इच्छुक नहीं है और याचिकाकर्ताओं को इस ऐतिहासिक संरचना के संरक्षण के लिए उठाए जाने वाले कदमों के संबंध में अपने नोट दाखिल करने का आदेश दिया.
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट की पीठ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें अधिकारियों को जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने और उसके आसपास सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. हालांकि, पीठ ने कहा कि वह जामा मस्जिद के प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के मुद्दे पर गौर करेगी. उसने दिल्ली वक्फ बोर्ड से जामा मस्जिद के लिए पहले नियुक्त की गई नौ सदस्यीय प्रबंध समिति की स्थिति के बारे में उसे सूचित करने को कहा.
हाई कोर्ट की पीठ ने कहा, “एक चीज स्पष्ट है, अगर जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत का दर्जा नहीं दिया जाता है, तो भी इससे अर्जित राजस्व पूरी तरह से किसी निजी व्यक्ति के पास नहीं जा सकता.” पीठ ने सुझाव दिया कि एएसआई द्वारा मस्जिद में किए गए संरक्षण कार्य के लिए उसे कुछ प्रतिपूर्ति दी जा सकती है.
एएसआई ने अपने हलफनामे में कहा कि उसने 2007 से जामा मस्जिद में किए गए संरक्षण कार्यों पर 60 लाख रुपये से अधिक धनराशि खर्च की है. मामले में एएसआई की पैरवी केंद्र सरकार के स्थायी वकील मनीष मोहन कर रहे हैं. हलफनामे के मुताबिक, चूंकि जामा मस्जिद एक ‘संरक्षित इमारत’ नहीं है, इसलिए एएसआई को उसके राजस्व के स्रोत और इस्तेमाल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
संरक्षित स्मारक घोषित होने पर होगा ये असर
इसमें कहा गया है, “जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने का ‘व्यापक प्रभाव’ है. निषिद्ध क्षेत्र का प्रावधान जामा मस्जिद पर लागू होगा, जो एक संरक्षित स्मारक के 100 मीटर दायरे में मौजूद क्षेत्र होता है, जिसमें नये निर्माण पर प्रतिबंध होता है.” हलफनामे के अनुसार, “इसके अलावा, निषिद्ध क्षेत्र से आगे 200 मीटर क्षेत्र में निर्माण संबंधी सभी गतिविधियों को विनियमित किया जाता है और सक्षम प्राधिकारी एवं राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है.”
याची ने जताई ये चिंता
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह ने जामा मस्जिद से अर्जित राजस्व के इस्तेमाल को लेकर चिंताएं जाहिर कीं. सिंह ने कहा कि पाकिस्तान में जामा मस्जिद एक विश्व धरोहर स्थल है. दूसरे याचिककर्ता ने जामा मस्जिद के इमाम द्वारा ‘शाही इमाम’ उपाधि का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई. हालांकि, पीठ ने कहा कि उसे उपाधि की नहीं, बल्कि लोगों को होने वाले वास्तविक लाभ की चिंता है. उसने कहा, “यह कई मंदिरों में भी होता है. हमें उपाधि से नहीं, बल्कि लोगों को होने वाले वास्तविक लाभ से मतलब है.”
हाई कोर्ट ने इस मामले को दिसंबर में अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया. उसने कहा कि केंद्र सरकार राजस्व के इस्तेमाल को सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ वक्फ बोर्ड द्वारा नियुक्त प्रबंध समिति के संबंध में अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र है.
उच्च न्यायालय ने एएसआई को मस्जिद का सर्वेक्षण करने और उसके परिसर की तस्वीरों के साथ एक स्केच पेश करने का निर्देश दिया. सुहैल अहमद खान और अजय गौतम की ओर से 2014 में दायर जनहित याचिकाओं में जामा मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी के ‘शाही इमाम’ उपाधि का इस्तेमाल करने और उनके बेटे को नायब इमाम के रूप में नियुक्त करने पर आपत्ति जताई गई है.
इस मसले पर पूर्व पीएम ने क्या कहा था?
इन याचिकाओं में सवाल किया गया है कि जामा मस्जिद एएसआई के अधीन क्यों नहीं है. एएसआई ने अगस्त 2015 में अदालत को बताया था कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को आश्वासन दिया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाएगा.
प्राधिकारियों की पैरवी कर रहे केंद्र सरकार के स्थायी वकील अनिल सोनी ने कहा कि उस ‘मूल फाइल’ का पता नहीं लगाया जा सका है, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस फैसले का जिक्र था कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाना चाहिए. इस पर हाई कोर्ट ने प्राधिकारियों को 28 अगस्त को उक्त फाइल उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया.
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