Delhi News: अनेक बच्चों के जन्म से ही  मानसिक और शारीरिक विकास के साथ-साथ कुछ ऐसी डिसेबिलिटी होती हैं, जिसकी वजह से वो लोगों से कम्युनिकेट नहीं कर पाते. बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार, हाव भाव को पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाते. इसे मेडिकल ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. मौजूदा दौर में इससे पीड़ित बच्चों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.


 एक्सपर्ट्स के अनुसार सही समय पर डायग्नोसिस और विशेषज्ञों से बेहतर संवाद से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों के इलाज संबंधित बेहद महत्वपूर्ण विषयों को लेकर एबीपी न्यूज ने मणिपाल हॉस्पिटल की डॉक्टर नीता अग्रवाल से खास बातचीत की है.


सवाल- बच्चों में मेडिकल ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के क्या लक्षण होते हैं और इसको कैसे नियंत्रित किया जा सकता है ?
डॉक्टर नीता अग्रवाल ने इस सवाल का जवाब देते हुए  कहा कि प्रमुख तौर पर ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे  किसी भी विषय को अपने हाव-भाव से दर्शाने की क्षमता को खो देते हैं. यानी वो ठीक से कम्युनिकेट नहीं कर पाते. बेहतर ढंग से बातचीत न करने की वजह से इन बच्चों को समाज में मेलजोल और व्यवहार बढ़ाने में काफी परेशानी होती है . बच्चों में यह ऑटिज्म कई प्रकार के होते हैं कुछ बच्चों में सामान्य होते हैं, तो कुछ बच्चों में यह गंभीर स्थितियों में भी देखे जाते हैं. 


उन्होंने बताया कि इसको नियंत्रित करने के लिए सबसे ज्यादा सही समय पर चेकअप के अनुसार जल्द डायग्नोसिस आवश्यक है. बच्चों में जब यह ऑटिज्म गंभीर स्थितियों में होता है, तो थेरेपी के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. इस बीमारी को हम लाइलाज से ना समझें बल्कि बच्चों को एक अच्छे माहौल रखें और  समय पर थेरेपी उपलब्ध कराएं. इससे निश्चित ही ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे भी सामान्य जीवन जी सकते हैं .


सवाल - क्या,  थेरेपी के अलावा भी  अन्य  इलाज मददगार हो सकता है ?
इस पर  डॉक्टर नीता ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि ऑटिज्म के  इलाज में थेरेपी समय पर बहुत आवश्यक है, लेकिन ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए विशेषज्ञों के निर्देश, अभिभावकों द्वारा बच्चे से एक अच्छे माहौल में बातचीत और छोटे से छोटे विषयों पर उनको दिया जाने वाला प्रशिक्षण भी काफी मददगार साबित होता है. खास तौर पर बच्चा जिस परिवार में रहे उसके सदस्यों को बहुत ही सकारात्मक व्यवहार अपनाना चाहिए. क्यूंकि परिवार के तनावपूर्ण माहौल में बच्चे काफी असहज महसूस करते हैं. इसके चलते उन्हें अपने कम्युनिकेशन को सामान्य बनाने में दिक्कत होती है.


सवाल- क्या अब के दौर में भारत में ऑटिज्म पीड़ित बच्चों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है ?
इसका जवाब देते हुए डॉक्टर ने कहा कि ऐसा नहीं है. भारत के अलावा कई देशों में ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे हैं. हालांकि ये जरूर कहा जा सकता है कि पहले की तुलना में अब दुनिया में ऑटिज्म पीड़ित बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है. इसका प्रमुख कारण है कि अभिभावक अब ज्यादा जागरूक हैं बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को लेकर अभिभावक गंभीर रहते हैं और असामान्य स्थिति पर तुरंत चिकित्सकों से संपर्क करते हैं.


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