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Arvind Kejriwal: कर्नाटक में जमानत जब्त, लेकिन जालंधर की जीत और यूपी में एंट्री से बढ़ा केजरीवाल का कद

Arvind Kejriwal News: अपने 11 साल के सफर में AAP राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में कामयाब हुई. पार्टी अपने प्रदर्शन को आगे बरकरार रख पाएगी या नहीं, के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी माना जाएगा.

Delhi News: अन्ना आंदोलन के बाद साल 2012 में अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी (AAP) ने पिछले 11 साल में दिल्ली और पंजाब में चौंकाने वाला सियासी सफर तय किया. दिल्ली में तीन बार लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में अपने दूसरे ही प्रयास में पार्टी प्रचंड बहुमत से अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के नेतृत्व में पिछले एक दशक से भी कम समय में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में कामयाब हुई. सियासी हैसियत के हिसाब से बीजेपी और कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) वर्तमान में देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है. देश की छह राष्ट्रीय पार्टियों में भी शामिल हैं. 

इसके अलावा, साल 2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव में 181 सीटों पर चुनाव लड़ी और पांच सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही. इसी तरह इस बार गोवा विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के दो प्रत्याशी जीत हासिल कर विधायक बने. ये बात भी सही है कि यूपी, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी सियासी मैदान में तो उतरी, पर उसका प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा. कर्नाटक और यूपी में तो पार्टी के सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. हिमाचल प्रदेश में 68 में से 67 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आप के 23 प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले. अब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में प्रस्तावित चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है. आगामी लोकसभा चुनाव भी पार्टी अपने दम पर अकेल चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है. 

11 साल के अल्प समय में आम आदमी पार्टी अपने दम पर शानदार सियासी प्रदर्शन के कारण देशभर में ​सियासी तौर पर एक प्रासंगिक पार्टी बन गई. इस दौरान पार्टी ने अपने कई अहम नेताओं को खोया भी है. अन्ना आंदोलन से अस्तित्व में आई इस पार्टी की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आज राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के कामकाज के तरीके से खुद अन्ना हजारे नाराज रहते हैं. सीएम अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली की वजह से देश के जाने माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण, चुनावी विश्लेषक योगेंद्र यादव, प्रोफेसर आनंद कुमार, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष, युवा कवि कुमार विश्वास, पूर्व विधायक कपिल मिश्रा, पार्टी के संस्थापक सदस्य आशीष खेतान और अजीत झा सहित कई नामचीन नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. ये सभी वो नाम हैं जो पार्टी के लिए अहम मायने रखते थे और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे. इन नेताओं के अलग होने से पार्टी की छवि बहुत हद तक डेंट हुई है. 

इसके बावजूद पार्टी के सियासी कद और छवि की चर्चा चरम पर है. ये चर्चा कई स्तरों पर होती है. इसमें पहला ये कि आप की विचराधारा क्या है, पार्टी की अभी स्थायी छवि बनी या नहीं, पार्टी अपना सियासी प्रदर्शन आगे बनाए रख पाएगी या नहीं, अरविंद केजरीवाल की पार्टी टीएमसी, एनसीपी, सपा, बसपा, आरजेडी,  जेडीयू, शिवसेना, एआईएडीएमके, डीएमके, बसपा, सपा, एसएडी जैसी पार्टियों से आगे निकल जाएगी या फिर संभावित सियासी झंझावातों में उलझकर रह जाएगी. आप के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि वो बीजेपी और कांग्रेस के सामने टिक पाएगी. 

आप के सामने एक और चुनौती यह है कि इसके नेता और मंत्रियों के नाम भ्रष्ट नेताओं में शुमार हो गए हैं. आप के दो कद्दावर मंत्री और सीएम केजरीवाल के अहम सहयोगी मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन तिहाड़ जेल में बंद हैं. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने अपने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री को सरकार गठन के कुछ दिनों बाद ही भ्रष्टाचार के आरोप में कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. पंजाब सरकार के एक और मंत्री पर गंभीर आरोप लगे हैं. ये आरोप आप के जड़ हो हिलाने वाली है. ऐसा इसलिए कि आप का सियासी पार्टी के रूप में उभार ही भ्रष्टाचार के खिलाफ हुई थी. ऐसे में अगर आप के नेता उसी में लिप्त पाये जाते रहे तो पार्टी का प्रदर्शन आगामी वर्षों के दौरान डिट्रैक भी हो सकता है. हालांकि, आम आदमी पार्टी के स्थायित्व को लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. इसके बावजूद अगर आप (AAP) भारतीय राजनीति में केंद्रीय विषय बनने सफल हुई है तो इसे उपलब्धि के तौर पर ही लिया जा सकता है. 

दिल्ली में AAP का विकल्प कोई नहीं

आम आदमी पार्टी दिल्ली में पहली बार चुनाव 2013 में लड़ी थी. पहली बार दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ने के बाद आप कांग्रेस से साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब हुई थी. हालांकि, गठबंधन सरकार केवल 49 दिन ही चल पाई. इसके बाद 2015 में दूसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ी और प्रचंड बहुत से अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब हुई. तीसरी बार भी साल 2020 में दिल्ली प्रचंड बहुमत से आम आदमी पार्टी अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई. दिसंबर 2022 में आप ने दिल्ली नगर निगम में 15 साल से काबिज बीजेपी को एमसीडी की सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हुई. वर्तमान में आप की दिल्ली में डबल इंजन की सरकार है. हालांकि, दिल्ली से एक भी लोकसभा सांसद आप के नहीं हैं.
 
पंजाब में लोकप्रियता बरकरार

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के साथ ही पंजाब के जालंधर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ. इस सीट पर कांग्रेस के दशकों पुराने वर्चस्व को समाप्त करते हुए आप प्रत्याशी सुशील रिंकू ने चुनावी जीत हासिल की है. इससे साफ हो गया कि पंजाब में अपनी सरकार बनने के बाद भी आप की लोकप्रियता पहले की तरह बरकरार है. जालंधर लोकसभा उपचुनाव आप का वोट शेयर 2019 के लोकसभा चुनाव के 2.5 प्रतिशत से बढकर 34.05 प्रतिशत तक पहुंच गया. आप के सुशील रिंकू ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की करमजीत कौर चौधरी को 58,691 मतों के अंतर से हराया. पंजाब चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक विधानसभा चुनाव में आप को 78.6% वोट मिले थे. 117 में से 92 सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी. साल 2017 विधानसभा की तुलना में 72 सीटें ज्यादा मिली. 2017 में आप को विधानसभा चुनाव में सिर्फ 20 सीटों पर जीत मिली थी. 

कर्नाटक में सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त

कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीटों में से 209 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन नतीजों के मुताबिक पार्टी को बड़ा झटका लगा. चुनाव आयोग से जारी डेटा के अनुसार आम आदमी पार्टी को राज्य में नोटा से भी कम वोट मिले हैं. चुनाव आयोग के डेटा के अनुसार नोटा को 0.69 प्रतिशत वोट मिले. वहीं आप को महज 0.59 प्रतिशत वोट मिले हैं. जबकि कर्नाटक में पार्टी प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मॉडल की तरह वहां के लोगों से फ्री बिजली, लोन माफ, फ्री पानी जैसे वादे किए थे. इसके बावजूद आप को करारी हार का सामना करना पड़ा. कर्नाटक की जनता ने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से खारिज कर दिया. चुनाव आयोग के मुताबिक, AAP को 1 फीसदी से भी कम वोट मिले. पार्टी को महज 2.25 लाख वोट मिले. इसी के साथ आम आदमी पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 

हिमाचल में 23 को NOTA से भी कम मिले वोट

साल 2022 में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) का जादू चल नहीं पाया. चुनावी रेवड़ियों का एलान करने के बाद भी हिमाचल प्रदेश में आप की झाड़ू पहाड़ की चढ़ाई चढ़ते हुए हांफ गई. दिल्ली और पंजाब में रिकार्ड जीत दर्ज करने वाली AAP हिमाचल में खाता तक नहीं खोल पाई. 68 में से 67 सीटों पर खड़े आप के प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. एचपी में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी को सिर्फ 1.10 फीसदी मत ही हासिल हुए. वह अपना खाता तक नहीं खोल पाई. डलहौजी, कसुम्पटी, चौपाल, अर्की, चंबा और चुराह जैसे निर्वाचन क्षेत्रों सहित 23 प्रत्याशी ऐसे रहे जिन्हें नोटा से भी कम वोट मिले. हिमाचल में सभी मिलाकर को मिलका आप को केवल 46,270 वोट मिले. 

गोवा: 2 प्रत्याशी विधानसभा में दस्तक देने में हुए कामयाब

जहां तक गोवा की बात है तो वहां पर आम आदमी पार्टी को 6.8 फीसदी मत मिले. वहां पर पार्टी की तरफ से दो नेता चुनावी जीत हासिल कर विधानसभा में दस्तक देने में कामयाब रहे, लेकिन गोवा की ये उपलब्धि पार्टी के लिए अब सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा है. गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान ही पार्टी पर दिल्ली शराब घोटाले से हासिल 100 करोड़ रुपए गोवा चुनाव में खर्च करने का आरोप लगा. इस बात को अभी ईडी या सीबीआई अदालत में पूरी तरह से साबित नहीं कर पाई है, लेकिन सीएम अरविंद केजरीवाल के सबसे निकटतम मंत्री मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा. इस घटना की वजह से आम आदमी पार्टी की छवि को गहरा धक्का लगा है. 

गुजरात की सफलता से AAP बनी राष्ट्रीय पार्टी

गुजरात चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 52.5 फीसदी रहा. AAP को 12.92 फीसदी वोट मिले और पार्टी 5 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल हुई. आप के 128 प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई. इसके बावजूद सीएम केजरीवाल की पार्टी गुजरात में अपने प्रदर्शन के बल पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में कामयाब हुई. 

यूपी निकाय चुनाव में 108 सदस्य

 उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में कोई सफलता नहीं मिली. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी आप को सभी सीटों पर निराश हाथ लगी और प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई, लेकिन ताजा यूपी निकाय चुनाव 2023 के परिणाम आप के लिए सुखद कहा जा सकता है. सुखद इसलिए नहीं कि पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा है बल्कि इसलिए कि पार्टी यूपी में चुनावी जीत का खाता खोलने में कामयाब हुई है. यूपी मेयर चुनाव में आप की उपलब्धि शून्य है लेकिन 8 नगर निगम पार्षद, 3 नगर पालिका परिषद अध्यक्ष, 30 नगर पालिका परिषद सदस्य, 6 नगर पंचायत अध्यक्ष, 61 प्रत्याशी पंचायत सदस्य बनने में सफल हुए हैं. निकाय चुनाव में अभी तक आप के कुल 108 प्रत्याशी  जीत हासिल करने में कामयाब हुए हैं. 

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