दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव खर्च के विवरण में कथित विसंगतियों को लेकर नयी दिल्ली सीट से केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका मंगलवार को यह कहते हुए खारिज कर दी कि याचिका में भ्रष्ट चुनावी कार्यप्रणाली के आरोप को साबित करने के लिए ठोस तथ्यों का अभाव है.


हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव-संबंधित विभिन्न गतिविधियों पर किए गए खर्चों के बारे में विशिष्ट विवरण की कमी आरोपों की विश्वसनीयता को घटाती है.


जज जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, ‘‘इस प्रकार, अदालत की राय है कि याचिकाकर्ता भ्रष्ट चुनावी कार्यप्रणाली के बारे में किसी भी महत्वपूर्ण तथ्य को पेश करने में विफल रहा...जो प्रतिवादी के चुनाव को रद्द करने के लिए उसके मामले में मदद करता.’’


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हाई कोर्ट ने कहा, ‘‘गहन अवलोकन के बाद, अदालत ने पाया कि वर्तमान चुनाव याचिका में मौलिक रूप से ‘ठोस तथ्यों’ का अभाव है, जो कार्रवाई का कारण प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं. बिना किसी आधारभूत सामग्री के, याचिकाकर्ता के व्यापक तर्क चुनावी भ्रष्ट आचरण के आरोपों को कायम रखने के लिए अपर्याप्त हैं.’’


कांग्रेस के अजय माकन को 2.50 लाख से अधिक मतों से हराया
हाई कोर्ट ने रमेश द्वारा दायर चुनाव याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने 2019 के आम चुनाव में लेखी के खिलाफ नयी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता लेखी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अजय माकन को 2.50 लाख से अधिक मतों से हराया था.


याचिकाकर्ता ने लेखी के चुनाव को चुनौती देते हुए आरोप लगाया कि उनके चुनाव खर्च में विसंगतियां थीं और वह भ्रष्ट चुनावी गतिविधियों में शामिल थीं. हाई कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट आरोप लगाना पर्याप्त नहीं है और याचिकाकर्ता को विवरण देना चाहिए.


अदालत ने कहा, ‘‘इसमें कथित भ्रष्ट आचरण, शामिल व्यक्तियों और ऐसे कृत्यों के समय और स्थानों के बारे में बताना चाहिए, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है.’’


अदालत ने कहा कि याचिका भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के आरोपों से भरी हुई है लेकिन इसमें आवश्यक ठोस तथ्यों और विशिष्ट विवरणों का अभाव है.


हाई कोर्ट ने लेखी की आपत्ति खारिज कर दी
अदालत ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता का तर्क है कि प्रतिवादी (लेखी) ने 70 लाख रुपये की मंजूर चुनाव व्यय सीमा को पार किया, लेकिन इस दावे का आधार अस्पष्ट है. पूरी याचिका में, मुख्य तर्क यह प्रतीत होता है कि प्रतिवादी ने आधिकारिक रजिस्टर में चुनाव गतिविधियों से संबंधित खर्चों को कम करके दिखाया.’’


न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि घोषित राशि और कथित वास्तविक व्यय के बीच विसंगतियों को उजागर करने वाले विशिष्ट विवरणों का स्पष्ट अभाव है.


लेखी ने अपना मामला पेश करते हुए चुनावी सीमा का मुद्दा उठाया था और कहा था कि याचिका परिणाम घोषित होने की तारीख से 45 दिनों की वैधानिक समय सीमा समाप्त होने के बाद दायर की गई थी. हाई कोर्ट ने लेखी की आपत्ति खारिज कर दी.