Delhi News: दिल्ली देश की राजधानी होने के साथ विधानसभा की व्यवस्था वाली केंद्र शासित प्रदेश भी है. यानि इसका दर्जा यूटी ज्यादा व्यापक और पूर्ण राज्य के स्टेटस के बीच वाला है. यही वजह है कि दिल्ली की नौकरशाही पर अधिकार को लेकर मचा विवाद अब पहले से ज्यादा गंभीर हो गया है. पिछले आठ दिनों के अंदर दो घटनाएं ऐसी हुईं जिसकी वजह से आप सरकार और बीजेपी के बीच विवाद चरम पर पहुंच गया है.
पहली घटना यह हुई कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार जनता की चुनी हुई सरकार को दे दिया. दूसरी घटना उसके प्रतिक्रिया में ये हुई कि उसके ठीक आठ दिनों के अंदर केंद्र ने अध्यादेश लागू कर स्थिति को पलट दिया. इतना ही नहीं, अध्यादेश में कई ऐसे प्रावधान हैं, जो इस बात के संकेत देते हैं कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार की स्थिति पहले से कमजोर हो गई है.
अध्यादेश सरकार की गतिविधियों पर निगरानी रखने में सझम
केंद्र के अध्यादेश पहले की व्यवस्था से कहीं ज्यादा दूरगामी प्रभाव डालने वाला है. 19 मई से लागू अध्यादेश में आप सरकार की गतिविधियों पर केंद्र की निगरानी रखने का भी प्रावधान है. यानी केंद्र एलजी और यहां की नौकरशाही के जरिए चुनी हुई सरकार के आदेशों की भी जांच करने की स्थिति में आ गई है. इसके लिए सचिव स्तर का अफसर नियुक्त होगा. अब कैबिनेट में आने वाले प्रस्ताव का पहले सचिव स्तर के अधिकारी विचार विमर्श करेंगे. यह भी व्यवस्था की गई है कि दिल्ली कैबिनेट की सूचनाएं केंद्र को देने में विफल रहने वाले अफसरों पर कार्रवाई भी होगी.
विभागीय सचिवों को बनाया गया ज्यादा जिम्मेदार
दिल्ली सरकार संशोधन अध्यादेश 2023 में सरकार के हर विभाग के सचिव को कैबिनेट नोट समेत हर मेमो को तैयार करने और प्रमाणित करने के लिए जिम्मेदार बनाया गया है. सचिव ही मंत्रियों और मुख्यमंत्री के सामने आने वाले हर प्रस्ताव पर विचार और मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार होंगे. अध्यादेश में सचिव स्तर के हर अधिकारी को अथॉरिटी की ओर से प्रस्ताव को मंजूरी देने का अधिकार दिया गया है. अगर सचिव स्तर के अधिकारी से कोई भूल होती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है.
यूं ही मंवी सौरभ भारद्वाज ने नहीं कही ये बात
यही वजह है कि आप नेताओं ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन को चेताते हुए कहा है कि उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि केंद्र सरकार कर्नाटक में भी दिल्ली जैसा अध्यादेश ला सकती है. मंत्री सौरभ भारद्वाज ने बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार भविष्य में कर्नाटक और अन्य राज्यों की सरकारों के फैसले को संविधान के दायरे अंदर या बाहर बताकर उसके स्टेटस को बदल सकती है. दिल्ली की तरह पूर्ण राज्य का दर्जा वाले राज्यों की सरकारों को भी एलजी या केंद्र सरकार को स्टेटस रिपोर्ट देनी होगी. यदि चूक हुई तो कार्रवाई भी होगी.
विवादित विषयों पर चूक अधिकारियों को पड़ेगा महंगा
अब दिल्ली में कार्यरत अधिकारियों को पहले से ज्यादा सतर्क रहना होगा. खासकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवादित विषयों पर. अध्यादेश के अनुसार अधिकारियों को ऐसे किसी भी मामले की जानकारी फौरन एलजी को देनी होगी.अध्यादेश में मुख्य सचिव और संबंधित विभाग के सचिव की जवाबदेही तय की गई है. उन्हें अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक यह सुनिश्चित कराना होगा कि कुछ भी फेरबदल होने की जानकारी तत्काल प्रभारी मंत्री, मुख्यमंत्री और एलजी को लिखित में मिले.
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