Chhath Puja 2024: खरना पूजा आज, रात से होगी व्रतियों के 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत
Delhi Chhath Puja 2024: चार दिवसीय छठ पर्व के तहत आज खरना पूजा के साथ 36 घंटे के लिए निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाएगी. इसका समापन छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देकर किया जाता है.
Delhi Chhath Puja 2024 Second Day: पूर्वांचल के रहने वाले लोगों के लिए आस्था के महापर्व छठ की कल नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो चुकी है. आज खरना पूजा है. चार दिवसीय इस पर्व के दौरान छठी मैया और भगवान भास्कर की पूजा का विधान है. आज इस चार दिवसीय पूजा दूसरा दिन है.
आज के दिन खरना पूजा होती है. खरना का अर्थ है शुद्धता. यह पूजा नहाए खाए के अगले दिन मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन अंतरमन की स्वच्छता पर जोर दिया जाता है. खरना पूजा इस महापर्व के दौरान की जाने वाली अहम पूजा है. ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन छठी मैया का आगमन होता है, जिसके बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है.
चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाने का विधान
आज खरना पूजा के दिन व्रती नहाने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करती हैं. शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर साठी के चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाई जाती है. जिसे भोग के रूप में सबसे पहले छठ माता को अर्पित किया जाता है.
आज के दिन व्रती उपवास रख कर रात में खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं. फिर घर के सदस्यों को प्रसाद दिया जाता है. इस पूजा के बाद से ही 36 घंटे के लिए निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है, जिसका समापन छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देकर किया जाता है.
पारण के साथ पूरा होता है उपवास
6 नवंबर को खरना पूजा के बाद षष्ठी तिथि यानी 7 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना-पूजा कर अर्घ्य दिया जाएगा. फिर 8 नवंबर सप्तमी तिथि को पारण के दिन उदयगामी सूर्य की पूजा कर उन्हें दूध और गंगा जल का अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद इस चार दिवसीय महापर्व का समापन प्रसाद वितरण के साथ होगा.
छठ पूजा विधान
नहाय-खाय से शुरू होने वाले इस महापर्व का विधान चार दिनों तक चलता है. भगवान भास्कर की आराधना का लोकपर्व सूर्य षष्ठी (डाला छठ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है. इस तिथि में व्रती महिलाएं शाम के समय नदी, तालाब-सरोवर या कृत्रिम रूप से बनाए गए जलाशय में खड़ी होकर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की आराधना करती हैं. उन्हें अर्घ्य दिया जाता है.
दीप जलाकर रात्रि पर्यंत जागरण के साथ गीत एवं कथा के जरिए भगवान सूर्य की महिमा का बखान का श्रवण किया जाता है. इसके बाद सप्तमी की तिथि में प्रातः काल में उगते हुए सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है. फिर प्रसाद ग्रहण करने के साथ इस महापर्व का समापन होता है.