(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Chhath Puja 2023 : छठी मैया के व्रतियों के लिए दंड प्रणाम साधना से कम नहीं, जानें कुछ लोग घर से घाट तक ऐसा क्यों करते हैं, क्या है रहस्य?
Chhath Puja 2023 Niyam: छठ पूजा व्रत का सबसे कठिन साधना जमीन पर लेटकर घर से छठ घाट तक जाना है. इस साधना को दंडी या दंड प्रणाम (Dand Pranam) कहा जाता है. इसका संबंध मन्नत से जुड़ा है.
Delhi News : लोक आस्था का पर्व छठ पूजा का यूं ही कठिन नहीं माना जाता है. एक तो इसमें व्रती को 36 घंटे तक निर्जल रहना पड़ता हैं. वहीं इस पर्व को मनाने के लिए पवित्रता के सख्त नियम लोगों पर काफी भारी पड़ता हैं, लेकिन इस पर्व में सबसे ज्यादा कठिनाई का उन्हें सामना उन्हें करना पड़ता है जो इच्छित मनोकामना पूर्ण होने की वजह से माता छठी का दंड प्रणाम देने के वादे से बंधे होते हैं.
निर्जल व्रत रख दंड प्रणाम आसान नहीं
छठ पर्व में दंड प्रणाम को सबसे कठिन इसलिए माना गया है कि इसमें दंड देने वाले को भी 36 घंटे तक निर्जल व्रत के नियमों का पालन करना होता है. साथ ही व्रती को जमीन पर लेटकर सशीर दंड प्रणाम देते हुए सड़क होते हुए पूजा घाट तक पहुंचना होता है. इतना ही नहीं, यह काम शाम में अस्ताचल और सुबह के समय सूर्य को अर्घ देने तक पानी में खड़ा भी अन्य व्रतियों के साथ होना पड़ता है. 36 घंटे का निर्जला उपवास दंड देते हुए घाट तक जाना किसी साधना से कम नहीं माना जाता है. दंड प्रणाम देने वाले लोगों को देखकर छठी माता के भक्तों में यह सवाल उठता है कि आखिर इस तरह दंड देकर घाट तक लोग क्यों जाते हैं.
इसे कहा जाता है दंड प्रणाम
दरअसल, छठ व्रत का सबसे कठिन साधना जमीन पर लेटकर घर से छठ घाट तक जाना है. इस साधना को दंडी या दण्ड प्रणाम भी कहा जाता है. इसका संबंध मन्नत जुड़ा है. बहुत कम लोग जानते हैं कि छठ पूजा को मन्नतका पर्व भी माना जाता है. जो भी माता या पिता या कोई और व्यक्ति छठी माता और सूर्य भगवान की श्रद्धा पूर्वक आराधना करते हैं, उनकी मनोकामनायें जरूर पूर्ण होती हैं. जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वो दंड प्रणाम देते हैं. दंड प्रणाम देने वाले व्रती सूर्य भगवान के 12 नाम को एक-एक जाप कर जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई बराबर निशान देते हुए आगे बढ़ते हैं. हर बार उठकर सूर्य भगवान को प्रणाम करते हैं. यह प्रक्रिया तब तक करते हैं ज तक कि घाट तक वो पहुंच न जाएं. प्राचीन समय में तो इस तरह केवल 13 बार दंड देने का प्रावधान था लेकिन परंपराएं बदलीं और लोग घर से छठ घाट तक दंड देकर जाने लगे हैं.
ये है दंड देने की प्रक्रिया
बता दें कि छठ पर्व पर संतान प्राप्ति और बीमारी से छुटकारा को लेकर जिनकी मनो कामना पूरी होती हैख् वे दंड देते हैं. दंड देने वाले पुरुष या महिलाओं के एक हाथ में लकड़ी होता है जो आम का होता है. व्रती जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई का लकड़ी सें एक निशान लगाते हैं. फिर उसे निशान पर खड़े को सूर्य भगवान को प्रणाम करते हैं. यह प्रक्रिया छठ घर से नदी घाट तक चलती है. दंड प्रणाम ढलते सूर्य को अर्घ देने के समय और उगते सूर्य को अर्घ देने के समय किया जाता है. महिलाओं और पुरुष के द्वारा दंड प्रणाम के बाद ही लोग डाला लेकर घाट तक जाते हैं. यही वजह दंड प्रणाम को सबसे कठिन साधना माना गया है. ऐसा करने की हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते हैं.