Delhi News: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केंद्र के अध्यादेश (Center Ordinance) के खिलाफ घमासान जारी है. अध्यादेश के खिलाफ सीएम अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) भी इन दिनों विपक्षी एकता की मुहिम पर हैं. इस मुहिम के तहत दिल्ली में अपनी आवाज बुलंद करने के बाद कल से दिल्ली से बाहर हैं. सियासी रणनीति के पहले चरण में वह बिहार के सीएम नीतीश कुमार और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर चुके हैं. दोनों राज्यों के सीएम ने उन्हें अध्यादेश के खिलाफ मुहिम में साथ देने का भरोसा दिया है. इस योजना के दूसरे चरण में दिल्ली के सीएम मंगलवार शाम को मुंबई पहुंच गए हैं. उनके साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान भी हैं.
बुधवार को सीएम अरविंद केजरीसाल इस मसले पर मातोश्री पहुंचकर महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और शिवसेना यूबीटी के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से मुलाकात करेंगे. इस दौरान वह विपक्षी एकता सहित दिल्ली में लागू केंद्र के अध्यादेश के मसले पर समर्थन हासिल करने की कोशिश करेंगे. वह गुरुवार को इसी मसले पर देश के राजनीति के कद्दावर नेता और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से यशवंतराव चव्हाण केंद्र में अपराह्न तीन बजे मिलेंगे.
अध्यादेश के खिलाफ ये है AAP सरकार की रणनीति
इस मुहिम के पीछे सीएम अरविंद केजरीवाल की रणनीति केंद्र सरकार की दिल्ली विधानसभा को संविधान के अनुच्छेद 239एए और सुप्रीम कोर्ट से मिली ताकत को जन समर्थन के बल पर बनाए रखना है. साथ ही केंद्र की ओर से जारी अध्यादेश के असर को बेअसर करना है. इस मुहिम के तहत वो चाहते हैं कि विपक्षी दलों का साथ मिले. वह अपनी इस योजना के तहत सभी विपक्षी दलों के नेताओं से क्रमवार मिलेंगे. सीएम केजरीवाल चाहते हैं कि विपक्षी दलों ने नेता अध्यादेश के खिलाफ उनका साथ दें. इतना ही नहीं, संसद के दोनों सदनों यानी राज्यसभा और लोकसभा से कानूनी रूप देने की केंद्र की रणनीति का विरोध के लिए सभी दलों को राजी करना है. जिससे राज्यसभा में केंद्र की मुहिम को विफल करना संभव हो सके.
1 दिन पहले क्या कहा था दिल्ली के CM ने
इस मुहिम पर दिल्ली से बाहर निकलने से पहले उन्होंने मंगलवार को एक ट्वीट कर कहा था कि मैं, देश भर में समर्थन हासिल करने के लिए दिल्ली से बाहर निकल रहा हूं. दिल्ली के लोगों के हक के लिए. सुप्रीम कोर्ट ने बरसों बाद आदेश पारित कर दिल्ली के लोगों के साथ न्याय किया, उन्हें उनके हक दिए. केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर वो सारे हक वापिस छीन लिए. उन्होंने लिखा है कि जब ये कानून राज्यसभा में आएगा तो इसे किसी हालत में पास नहीं होने देंगे. दिल्ली वालों का हक बचाए रखने के लिए सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से मिलकर उनका साथ मांगूंगा. ये लड़ाई केवल दिल्ली वालों की लड़ाई नहीं है. ये लड़ाई भारतीय जनतंत्र को बचाने की लड़ाई है. बाबा साहिब के दिए संविधान को बचाने की लड़ाई है. न्यायपालिका को बचाने की लड़ाई है. ये लड़ाई देश बचाने की लड़ाई है. इसमें सबके साथ की अपेक्षा करता हूं. इस लड़ाई में केंद्र सरकार को अध्यादेश वापस लेने के लिए मजबूर करूंगा.
सच स्वीकार करने के लिए राजी नहीं AAP सरकार
दूसरी तरफ अध्यादेश को लेकर बीजेपी के नेताओं का तर्क है कि आप सरकार दिल्ली में जो स्थिति पैदा करने पर उतारू है, उस बात को ध्यान में रखते हुए अध्यादेश लाना जरूरी था. अध्यादेश का समर्थन करते हुए दिल्ली बीजेपी के सभी सांसदों ने एक सुर में दो दिन पहले सीएम केजरीवाल की सरकार पर हमला बोला था. बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने दिल्ली के सीएम पर निशाना साधते हुए कहा था कि दिल्ली की प्रशासनिक और कानूनी स्थिति दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाती है. इस बात को जानते हुए भी दिल्ली के सीएम अपने 'तानाशाह रवैये' के कारण स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं. ऐसे में केंद्र के पास आवश्यक अध्यादेश लाने का अधिकार है. यही वजह है कि केंद्र इसे लेकर आई है. सीएम केजरीवाल इस पर विवाद कर रहे हैं. सच यह है कि उन्हें भ्रष्टाचार के उजागर होने का डर है.
बता दें कि केंद्र सरकार ने 19 मई को दिल्ली में अध्यादेश को लागू कर सुप्रीम कोर्ट से पहले वाली स्थिति बहाल कर दी है. उसके बाद एलजी को मिली कानूनी और प्रशासनिक शक्त्यिां फिर से वापस मिल गई हैं. इतना ही नहीं, अध्यादेश की वजह से दिल्ली में कानून व्यवस्था, दिल्ली पुलिस और भूमि जैसे मसलों से अलावे अन्य मसलों पर भी एलजी से अंतिम सहमति लेना अनिवर्य कर दिया है. यानी एलजी अब यूटी की तरह पूरी तरह से प्रशासक की भूमिका में आ गए हैं. यही वो स्थिति है जिसकी वजह से सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है.