Delhi AIIMS News: कोरोना काल मे जिस ब्लैक फंगस नाम की लाइलाज बीमारी से पूरी दुनिया दहशत में आ गई थी, अब उसका इलाज संभव है. वह भी मां के दूध में पाए जाने वाले लैक्टोफेरिन नाम के प्रोटीन से. यह दावा दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में किए गए शोध के आधार पर किया जा रहा है. लैक्टोफेरिन प्रोटीन के साथ एम्फोटेरिसिन-बी का इस्तेमाल कर लैब में किए गए परीक्षण में इसे काफी कारगर पाया गया है. 


एम्स के बायोफिजिक्स एवं माइक्रोबायोलाजी डिपार्टमेंट के डाक्टरों द्वारा लैब में किए गए शोध में इसका खुलासा हुआ है. जिसे हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (फ्यूजर माइक्रोबायोलाजी जर्नल) में प्रकाशित किया गया है. एम्स के डाक्टरों का दावा है कि भविष्य में मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन से ब्लैक फंगस की दवा तैयार की जा सकती है, जिसका इस्तेमाल एम्फोटेरिसिन-बी के साथ किया जा सकेगा. इस शोध को एम्स के बायोफिजिक्स डिपार्टमेंट की प्रोफेसर डॉ. सुजाता शर्मा, डॉ. प्रदीप शर्मा, डॉ. तेज पी सिंह एवं माइक्रोबायोलाजी डिपार्टमेंट की प्रोफेसर डॉ. इमैकुलाटा जेस ने मिलकर किया है.


ब्लैक फंगस के संक्रमण से इन्हें सबसे ज्यादा खतरा


ब्लैक फंगस बीमारी से उन मरीजों को सबसे ज्यादा खतरा होता है जो अनियंत्रित डायबिटीज, कैंसर से पीड़ित होते हैं या फिर जिनका अंग प्रत्यारोपित किया गया हो. आग के शिकार हुए हों या फिर ऐसे मरीज जो आईसीयू में भर्ती हों, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है. दुनिया भर में इसके संक्रमण के सबसे अधिक मामले कोरोना काल मे सामने आए थे. 


कोरोना के दौरान दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण काफी मरीजों के पैंक्रियाज प्रभावित हुए थे. काफी संख्या में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई थी. इस बीमारी के कारण उस वक्त काफी लोगों की मौत भी हो गई थी. इसमें मृत्यु की दर 30 से 80 प्रतिशत तक दर्ज की गई है. इस जानलेवा संक्रमण के खतरे को देखकर इसके खिलाफ प्रभावी दवा बनाने के उद्देश्य से एम्स में इस शोध को शुरू किया गया था.


इस वजह से मां के दूध से इलाज संभव 


एम्स के शोधार्थियों का कहना है हगर ब्लैक फंगस बीमारी का शुरुआत में पता चलने पर इसे नियंत्रित किया जा सकता है. जबकि गंभीर होने पर सर्जरी ही इसका एकमात्र उपाय होगा. डॉक्टरों के मुताबिक मां के दूध खास तौर पर प्रसव के शुरुआती तीन दिनों के भीतर निकलने वाले दूध जिसमें लैक्टोफेरिन प्रोटीन, जो बैक्टेरियल और फंगल इंफेक्शन से बचाव के लिए काफी कारगर होता है, की मात्रा सर्वाधिक होती है. इससे लैक्टोफेरिन को अलग कर जब एम्फोटेरिसिन-बी के साथ ब्लैक फंगस पर परीक्षण किया तो पाया कि यह ब्लैक फंगस पर 8 गुना अधिक प्रभावी है. लैक्टोफेरिन काला फंगस के संक्रमण को रोक देता है.


जानवरों पर टेस्ट के बाद होगा ह्यूमन ट्रायल


शोध में सामने आए परिणामों के आधार पर अब जानवरों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है, जिसके सफल होने के बाद मनुष्यों पर इसका परीक्षण किया जाएगा. इन परीक्षणों की सफलता के आधार पर आगे इससे दवा बना कर बाजारों में उतारने की योजना है.


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