Delhi Air Pollution News: दिल्ली एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों की सेहत पर असर हो रहा है. हर रोज बड़ी संख्या में अस्पतालों और क्लीनिकों पर बच्चे और बड़े पहुंच रहे है. बीते हफ्ते से दिल्ली में प्रदूषण का एयर क्वालिटी इंडेक्स 450 से 500 के करीब है और यही कारण है कि सुबह दोपहर या शाम दिल्ली एनसीआर में वक्त का पता नहीं चल रहा हर वक्त सफेद धुंध के कारण शहर धुंधला हो गया है.
दिल्ली एनसीआर के हालात को देखते हुए छोटे बच्चों को घर से बाहर भेजने में भी अब पेरेंट्स कतरा रहे हैं यही वजह है पार्क और प्लेग्राउंड में बच्चे तो क्या अब बड़े भी नहीं दिखाई दे रहे हैं. एयर क्वालिटी लेवल हर रोज बढ़ रहा है जिसके कारण खासतौर से बच्चों की सेहत खराब हो रही है.
क्या कहते हैं बच्चों के पेरेंट्स?
पेरेंट्स से बात करने के लिए जब हम दिल्ली की रहने वाली आरुषि गुप्ता के घर पहुंचे तो देखा कि उन्होंने अपने घर के अंदर ही बच्चे को आउटडोर प्ले एरिया का फील देने के लिए खूब सारे खिलौने, स्लाइड, किताबे और अनेक रंग की चीज़ें रख रखी थी. उन्होंने बताया कि उनका बच्चा युवान 20 महीने का है और बाहर जाने की ज़िद्द करता है इसीलिए उसको घर के अंदर रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाता है.
आरुषि का कहना है कि जितना ज्यादा पॉल्यूशन इस वक्त हो रहा है उससे बच्चे को बचाना बहुत जरूरी है.घर के अंदर रहने की वजह से बच्चे का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है.बच्चों के एडमिशन का सोच रहे थे लेकिन जितना पॉल्यूशन इस वक्त है उसमें बच्चे को बाहर भेजते हुए डर लगता है.
आरुषि गुप्ता ने बताया कि उनके बेटे युवान की तबीयत खराब है खासी जुकाम और सीने पर इंफेक्शन की वजह से उसको घर में ही नेबुलाइजर वेपराइजर सब दिया जाता है. क्योंकि छोटा बच्चा है तो उसके लिए कमरे में वेपराइजर लगा देते हैं ताकि वह स्टीम ले सके जिसकी वजह से सीने पर आराम मिलता है और इन्फेक्शन का खतरा कम होता है. आरुषि ने बताया कि घर के अंदर पॉल्युशन ना हो इसलिए खिड़की दरवाजे बंद रखते हैं. वेपराइजर और वेपराइज करते हुए विजुअल ड्राइंग रूम को आउटडोर स्पेस का फूल देने के लिए स्लाइड से लेकर खेलने के हर खिलौने को बच्चों के लिए सजा रखा है.
‘बच्चों में इंफेक्शन के केस बढ़े’
बच्चों को हो रही प्रदूषण से समस्याओं पर जब हमने डॉ. विश्रुत सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि एक हफ्ते से ओपीडी में सबसे ज्यादा बच्चे ही आ रहे हैं. कुछ केसेस ऐसे भी है जिनको इन्फेक्शन की वजह से एडमिट करना पड़ रहा है. एक हफ्ते में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण अस्पतालों और क्लीनिक में प्रदूषण से समस्याओं के कारण बच्चों की संख्या तकरीबन 50 से 60% तक बढ़ी है.जिसमें 6 महीने से 5 साल तक के बच्चे है. डॉक्टर के मुताबिक क्योंकि बच्चों की सांस की नली छोटी होती है और यही वजह है कि उसमें जब इंफेक्शन होता है तो बच्चे सांस नहीं ले पाते और कई ऐसे पेशेंट भी इस वक्त आ रहे हैं जिनको एडमिट तक करना पड़ रहा है.
‘सिम्टम्स दिखाई देने पर डॉक्टर को दिखाएं’
पीडियाट्रिशियन डॉ. विश्रुत सिंह ने बताया बच्चों को ज्यादा परेशानी हो रही है चाहे बच्चे इनडोर हो या आउटडोर इंफेक्शन जल्दी बच्चों को लगता है उनकी इम्यूनिटी भी कम होती है.एक अच्छी बैलेंस डाइट लेने की जरूरत है ताकि बच्चों की इम्युनिटी अच्छी रहे लेकिन सबसे जरूरी यह है कि अगर थोड़े से भी सिम्टम्स बच्चों में नजर आ रहे हैं तो सबसे पहले उसको किसी अच्छे स्पेशलिस्ट डॉक्टर के पास लेकर जाएं.
उन्होंने आगे बताया कि बच्चों में खांसी जुकाम सांस लेने में परेशानी सीने पर इंफेक्शन जैसी समस्या सबसे ज्यादा देखी जा रही है. डॉक्टर का कहना है कि बाजार में बिकने वाली कोई भी चीज या किसी भी दवा का बिना सलाह के इस्तेमाल ना करें.
नेबुलाइजर और वेपराइजर की बढ़ी बिक्री
ऑल इंडिया केमिस्ट एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी प्रियांश गुप्ता ने बताया कि बीते एक हफ्ते में बढ़ते प्रदूषण के कारण नेबुलाइजर और वेपराइजर और उससे जुड़ी दवाइयां की सेल बहुत ज्यादा बढ़ गई है. तकरीबन 40 से 50% सेल बढ़ी है. दिन में 250 प्रिस्क्रिप्शन में 150 में नेबुलाइजर रेसपीयूल्स, लंग से जुड़ी दवाइयां और आई ड्रॉप्स आ रहे है.
इसके अलावा लोग खुद से मास्क बहुत ज्यादा क्वांटिटी में खरीद रहे हैं. बढ़ते प्रदूषण के कारण छोटे बच्चों को बचाने के लिए पेरेंट्स हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं तो वहीं डॉक्टर के मुताबिक एक हफ्ते में सबसे ज्यादा पेशेंट में बच्चे हैं. केमिस्ट के पास नेबुलाइजर वेपराइजर और रेसपीलूल्स की बिक्री बढ़ गई है.
मदीहा खान की रिपोर्ट
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