भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने दिल्ली (Delhi) की एक कोर्ट में कुतुब मीनार (Qutub Minar) की संपत्ति पर स्वामित्व का दावा करने वाली एक याचिका का बुधवार को विरोध किया. एएसआई ने कहा कि यह हस्तक्षेप याचिका निराधार है और इसमें कोई तार्किक या कानूनी तर्क नहीं है. कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया कि हस्तक्षेप करने वाला कुतुब मीनार संपत्ति पर स्थित कथित मंदिर परिसर में भगवान की प्रतिमाओं की पुनर्स्थापना की अपील करने वालों में एक आवश्यक पक्ष है. कोर्ट में नौ जून को दायर याचिका में दावा किया गया है कि कुंवर महेन्द्रध्वज प्रताप सिंह संयुक्त प्रांत, आगरा (Agra) के उत्तराधिकारी, दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में कई संपत्ति के मालिक हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास जिन संपत्तियों का स्वामित्व है उसमें कुतुब मीनार शामिल है.
कहा- आपत्ति करने का समय कई बार बीत चुका
एएसआई ने कहा कि मौजूदा अपील में कोई भी अधिकार तय करने के लिए यह याचिका पर्याप्त नहीं है और हस्तक्षेप करने वाले ने दिल्ली और उसके आसपास की जमीनों पर मालिकाना हक का दावा 1947 से अभी तक किसी कोर्ट में नहीं किया गया है. एएसआई ने कहा कि चूंकि वापसी या स्वामित्व या निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर करने का समय कई दशक पहले गुजर चुका है, ‘स्वामित्व का दावा और उनकी संपत्ति में हस्तक्षेप पर निषेधाज्ञा पाने का अधिकार’ देरी के सिद्धांत के तहत समाप्त हो चुका है. एएसआई ने कहा कि जब कुतुब मीनार को कानूनी तौर पर 1913 में संरक्षित विरासत घोषित किया गया तो किसी ने उस पर आपत्ति नहीं की थी और आपत्ति करने का समय कई बार बीत चुका है.
अगली सुनवाई 13 सितंबर को
विभाग ने कहा कि हस्तक्षेप करने वाले ने भूमि के मालिकाना हक को चुनौती नहीं दी है और स्वामित्व का दावा किया है. एएसआई ने कहा कि साथ ही हस्तक्षेप करने वाले ने केन्द्र और राज्य की ओर से भूमि के प्रतिनिधि मालिकों भूमि और विकास कार्यालय और दिल्ली विकास प्राधिकारण (डीडीए) के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया है. एएसआई और हस्तक्षेपकर्ता की दलीलें सुनने के बाद अतिरिक्त जिला जज दिनेश कुमार ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 सितंबर की तारीख तय की.
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