Delhi News: दिल्ली में असोला के जंगलों में दिखे तेंदुए के दो बच्चे, सुरक्षा में लगातार पेट्रोलिंग कर रहे वनकर्मी
दिल्ली के असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सेंचुरी (Asola Bhatti Wildlife Sanctuary) में आठ तेंदुए थे. अब दो शावकों को जन्म के बाद इनकी संख्या बढ़ गई है. कर्मचारी लगातार पेट्रोलिंग कर रहे हैं.
Delhi News: दिल्ली के असोला भाटी माइंस सेंचुरी में तेंदुआ (Leopard) के शावकों को देखा गया है. ये करीब एक महीने के हैं. ये खबर मिलने के बाद वन विभाग ने इस पर खुशी जाहिर की है और कहा है कि दिल्ली के जंगल जानवरों के लिए उपयुक्त हैं और इन शावकों का जन्म इसका प्रमाण है.
उपयुक्त माहौल में ही लेपर्ड करते हैं ब्रीडिंग
असोला के जंगलों में एक माह के दोनों शावकों को देखने के बाद वन विभाग के अधिकारियों में बेहद खुशी है.अधिकारियों ने बताया कि लेपर्ड या और कोई जंगली जानवर उसी जगह ब्रीड करता हैं, जहां अच्छा माहौल हो. जानवरों के लिए सकारात्मक परिस्थिति हो यानी उनके रहने-खाने की जहां दिक्कत न हो. विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इस पूरे क्षेत्र में कई जगह कैमरे लगाए गए हैं, जिनसे मिली तस्वीरों के अनुसार, इस सेंचुरी में करीब 8 लेपर्ड हैं. दो शावकों के जन्म के बाद इनकी संख्या बढ़ गई है.
वन विभाग कर रहा कई तरह के उपाय
लेपर्ड की संख्या बढ़ रही है. इसके लिए वन विभाग कई तरह से काम कर रहा है. जिसके तहत जंगलों की सुरक्षा, जंगलों में ह्यूमन एंट्री, जंगलों का अतिक्रमण जैसे हर एंगल से जंगल को बचाने के लिए दिल्ली का वन विभाग काम कर रहा है. विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जंगल के इलाके में लगातार पेट्रोलिंग कर रहे हैं. किसी तरह की कोई अनहोनी न हो, इसके लिए 24 घंटे तत्पर रह रहे हैं.
लेपर्ड दिखे तो वन विभाग को सूचित करें
फॉरेस्ट विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि अगर किसी रिहायशी इलाके में लेपर्ड दिखता है तो उससे दूरी बनाकर रखें और वन विभाग के टोल फ्री नंबर पर कॉल करके उसकी सूचना दें. लेपर्ड देखने के बाद उसे घेरे नहीं, फ्री छोड़ें. भीड़ न लगने दें. उसे आश्वस्त होने दें कि वह फ्री है और उसे किसी तरह का खतरा नहीं है. ऐसा होने पर वह कुछ भी नहीं करेगा. यदि वह डर गया तो वो आप पर हमला कर सकता है. वैसे लेपर्ड छोटे-छोटे जानवरों का शिकार करता है.
विलुप्त हुए चीतों को पिछले साल लाया गया
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से आए 8 चीतों को पिछले साल 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था. हमारे देश में वर्ष 1952 में चीते विलुप्त हो गए थे और 70 साल बाद इन्हें भारत लाया गया है.
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