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Delhi News: बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित भव्य नैन बन सकते हैं जज, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित होने के बावजूद भव्य नैन जज बन गए हैं. दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड ने कहा नैन न्यायिक अधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन पूर तरह कर पाएंगे.

Delhi News: 36 वर्षीय भव्य नैन हमेशा से पढ़ाई में काफी अच्छी रहे. वह 12वीं कक्षा में टॉप रैकर थे.  इसलिए, उनके वकील पित कवल नैन को  जब बेटे की जज या प्रोफेसर बनने की महत्वाकांक्षा के बारे में पता चला, तो उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई.  भव्य ने करियर के तौर पर लॉ फिल्ड को चुना और वे अपनी मंजिल को पाने के लिए मेहनत भी कर रहे थे इसी दौरान उन्हें पता चला कि वह बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित हैं. ये ऐसी बीमारी है जो रोगी और परिवार दोनों को काफी तोड़ देता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित होने बावजूद भव्य ने LLM के टॉपर्स में से एक थे

हालांकि मानसिक कल्याण आज एक वर्जित विषय नहीं है, लेकिन वो 2010  का समय था जब  25 साल की उम्र में, भव्य में बाइपोलर डिसऑर्डर का पता चला था और उस दौरान उन्हें मेडिकल काउंसलिंग और ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ी थी. टीओआई में छपी रिपोर्ट के मुताबित भव्य के पिता कवल ने बताया, "उसने उस मोर्चे पर काफी लड़ाई का सामना किया है. इसके बावजूद, उसने अपने एलएलएम में टॉप किया,”

भव्य ने दिल्ली न्यायिक सेवा परीक्षा भी पास की

नैन ने विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) की श्रेणी के तहत आवेदन करने के बाद दिल्ली न्यायिक सेवा-2018 परीक्षा उत्तीर्ण की. उन्होंने साक्षात्कार सहित परीक्षा के सभी तीन राउंड पास किए, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को मई 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय प्रशासन ने खारिज कर दिया था. सिस्टम से लड़ने और कानूनी लड़ाई में शामिल होने में उन्हें और तीन साल लग गए.  सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी वरिष्ठता बरकरार रखते हुए उन्हें सेवा में शामिल होने की अनुमति दी. 

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि नैन को राष्ट्रीय राजधानी में जिला अदालतों में से एक में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने और न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में कोई बाधा नहीं है. पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश शामिल थे, ने नैन की नियुक्ति के लिए डेक को साफ करते हुए 17 नवंबर को गठित एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर भरोसा किया. इस तरह बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित भव्य आज जज बन गए हैं.

क्या है बाइपोलर डिसऑर्डर

बाइपोलर डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है जो डिप्रेशन और मूड में बदलाव की वजह बनती है. उसमें रोगी की मनोदशा दो विपरीत अवस्था में बदलती रहती है. बीमारी की चपेट में आने के बाद कई बार व्यवहार पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है. औसतन एक शख्स को इसका पता 25 साल की उम्र के आसपास चलता है, लेकिन लक्षण किशोरावस्था या बाद में भी जाहिर हो सकते हैं. 

बाइपोलर डिसऑर्डर के क्या हैं लक्षण
बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित शख्स को अक्सर सोने में दुश्वारी होती है. उसके अन्य लक्षणों में व्यवहार का चिड़चिड़ा हो जाना, पागलपन और डिप्रेशन दोनों एक साथ होना, ऊर्जा में कमी, काम को पूरा करने में परेशानी, अक्सर खोये खोये रहना, विचार मग्न रहना, जल्दी-जल्दी बोलना, खुद को चोट पहुंचाना, आत्महत्या का विचार शामिल हैं. पीड़ित शख्स का जिंदगी के प्रति दृष्टिकोण नकारात्मक हो सकता है. बीमारी पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करती है. पुरुषों को महिलाओं की तुलना में जल्दी बाइपोलर डिसऑर्डर होने की संभावना होती है. कुछ लोगों को बहुत ज्यादा व्याकुलता का भी अनुभव हो सकता है. ये जोखिम भरा व्यवहार जैसे खुदकुशी के प्रयास का कारण बनती है

बाइपोलर डिसऑर्डर की रोकथाम के उपाय

बाइपोलर डिसऑर्डर लंबे समय तक रहनेवाली स्थिति है. इसलिए, पीड़ित शख्स को दवा से ज्‍यादा प्‍यार और प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है. अगर आपको किसी में लक्षण दिखाई दे, तो दवा या विशेषज्ञ के लिए डॉक्टर से संपर्क करें. जीवनशैली में बदलाव भी बीमारी की रोकथाम में मददगार हो सकते हैं. इसलिए, नियमित व्यायाम करें, खाने और सोने के शेड्यूल का पालन करें, अपने मूड में आए उतार-चढ़ाव को समझने की कोशिश करें, तनाव को नियंत्रित करना सीखें, सेहतमंद शौक या स्पोर्ट्स की तलाश करें, अल्कोहल न पीएं. कुछ लोग लक्षणों को हल्का करने के लिए खास सप्लीमेंट्स लेते हैं, लेकिन उसके इस्तेमाल से संभावित मुद्दे हो सकते हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि किसी सप्लीमेंट्स को लेने से पहले डॉक्टर को बताएं.

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