Delhi Budaun Darwaza: दिल्ली में 11 सौ साल पहले बनवाए दरवाजे की खोज के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)  सक्रिय हो गई है. गौरतलब है कि ये दरवाजा पृथ्वीराज चौहान के किला राय पिथौरा के पूर्वी छोर के तीन दरवाजों में से एक है. लेकिन ये उस स्थान पर नजर नहीं आ रहा है. इस दरवादे का नाम बदायूं का दरवाजा (Budaun Darwaza) है. वहीं एएसआई के मुताबिक बदायूं का ये दरवाजा दिल्ली के साकेत के पास बने जंगल में जमीन के नीचे दबा हुआ है जिसे बाहर निकालने के लिए खुदाई की जाएगी. बहरहाल इसके लिए दिल्ली के एएसआई मंडल ने परमिशन भी ले ली गई है.


साकेत मेट्रो स्टेशन के जंगल में बदायूं का दरवाजा दबा होने की संभावना


दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट के मुताबिक किला राय पिथौरा की चाहरदिवारी लाडो सराय, हौजरानी, साकेत, प्रेस एन्कलेव और मित्तल फॉर्म व महरौली-बदरपुर रोड के समीप है. इनके बीच ही हौजरानी का दरवाजा, बदायूं का दरवाजा और बरका दरवाजा हुआ करता था. वर्तमान में किला राय पिथौरा चाहरदीवारी के साक्ष्य मौजूद तो हैं लेकिन उनमें बदायूं का दरवाजा नजर नहीं आता है. ऐसे में एएसआई को साकेत मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर तीन की तरफ जंगल में बदायूं के दरवाजा होने की संभावना है. इसके एक साइड कुतुब गोल्फ कोर्स और दूसरी तरफ सीआइएसएफ का परिसर है.


कैसे पड़ा बदायूं दरवाजे का नाम


वहीं पुरातत्वविद के मुताबिक बदायूं आने-जाने के लिए इस दरवाजे का इस्तेमाल हुआ करता था. इसीलिए इस दरवाजे का नाम बदायूं दरवाजा पड़ा था. वहीं रिपोर्ट के मुताबिक एएसआई के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डॉ बीआर मणि बताते हैं कि बदायूं दरवाजा राजा अनंगपाल तोमर ने बनवाया था. इसके बाद ये दरवाजा पृथ्वीराज चौहान के किला राय पिथौरा का अहम दरवाजा बन गया था. हालांकि उनके शासन का पतन हुआ तो कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुमिश ने इस किले में अपने हिसाब से निर्माण कराया और इस दरवाजे का बहुत ज्यादा इस्तेमाल भी किया


किसने बनवाया था बदायूं का दरवाजा?


वहीं एक और पुरातत्वविद बताते हैं कि जिस समय दिल्ली पर कुतुबुद्दीन ऐबक का राज था उस दौरान इल्तुतमिश बदायूं का गवर्नर हुआ करता था. ऐबक की मृत्यु होते ही इल्तुमिश दिल्ली पर राज करने लगा. उसने भी बदायूं के दरवाजे का खूब इस्तेमाल किया. राजा अनंगपाल तोमर ने 736 ई. में दिल्ली की स्थापना की थी. वहीं राजा अनंगपाल तोमर  द्वितीय ने वर्ष 1052 में यहां एक किला लालकोट का निर्माण करवाया. इस लालकोट किले में 13 दरवाजे हुआ करते थे और इनमें सबसे बड़ा और प्रमुख दरवाजा बदायूं का दरवाजा ही था.


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पृथ्वीराज चौहान सहित कई शासकों ने बदायूं के दरवाजे का भरपूर इस्तेमाल किया


अनंगपाल के बाद दिल्ली पर अजमेर के चौहान वंश के शासन पृथ्वीराज चौहान ने शासन किया. उनका दिल्ली पर राज 1175 से 1192 तक चला. उनके किले का नाम पिथौरा था और उन्होंने लाल कोट में कई निर्माण भी करवाए और फिर इस किले का नाम राय पिथौरा पड़ गया. उस दौरान किला राय पिथौरा का मुख्य दरवाजा बदायूं का दरवाजा ही हुआ करता था. बाद के राजाओ ने भी इस दरवाजे का काफी इस्तेमाल किया.


अलाउद्दीन खिलजी ने बदायूं के दरवाजे पर की थी शराब से तौबा


बदायूं के दरवाजे के बारे में प्रचलित है कि यहां अलाउद्दीन खिलजी ने मदिरा से भरे सभी बर्तन तोड़ दिए थे और कसम खाई थी कि वह कभी शराब नहीं पीएगा. खिलजी के शासनकाल में इसी दरवाजे के पास दोषियों को सजा दी जाती थी और उनका सिर यही कलम किया जाता था. दिल्ली सल्तनत में बदायूं का दरवाजा सबसे ज्यादा व्यस्त दरवाजा रहा. यहां से कारोबार सहित सभी प्रशासनिक और जंग के फौज का आना-जाना लगा रहता था. 19वीं शताब्दी में एएसआई के लिए जनरल एलक्जेंडर कनिंघम ने बदायू के दरवाजें सहित 10 दरवाजों के अवशेष भी खोजे थे.


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