Delhi Ordinance Row: दिल्ली CMO का आरोप, सीएम के फैसले पलट रहे नौकरशाह, LG ऑफिस ने किया ये दावा
Delhi Politics: दिल्ली के सीएमओ की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सीएम अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिनों पहले अध्यादेश को लेकर सही आशंका जाहिर की थी.
Delhi News: केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली पर थोपे गए अध्यादेश को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आशंकाएं अब सच साबित होती दिख रही हैं. सीएमओ का आरोप है कि मुख्यमंत्री ने कुछ दिनों पहले सही आशंका जताई थी कि अध्यादेश (Delhi Ordinance Row) लागू होने से मंत्रियों के उपर नौकरशाहों का शासन हो जाएगा. अध्यादेश के जरिए दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर गठित राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) की हुई बैठकों में नौकरशाहों के मनमाने रवैये से साफ होता जा रहा है कि यह प्राधिकरण मात्र एक दिखावा बनकर रह गया है. नौकरशाह एकतरफा निर्णय लेकर मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए निर्णयों को पलट दे रहे हैं. इसकी एक बानगी 29 जून 2023 को हुई एनसीसीएसए की दूसरी बैठक में देखने को मिली. इस बैठक में मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए निर्देशों की पूरी तरह से अवहेलना की गई है, जो ये दिखाता है कि एनसीसीएसए मात्र एक दिखावा से ज्यादा कुछ नहीं है.
केंद्र के अध्यादेश के तहत मुख्यमंत्री को एनसीसीएसए का अध्यक्ष बनाया गया है. जबकि दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव इसमें सदस्य हैं. नियमानुसार एनसीसीएसए अपने फैसले बहुमत के आधार पर लेगा. ऐसे में इस अध्यादेश ने केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त दोनों नौकरशाहों मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव को मुख्यमंत्री के किसी भी फैसले को पलटने में समक्ष बना दिया है. एक तरह से नौकरशाहों को एनसीसीएसए को चलाने का अनियंत्रित शक्ति मिल गई है और चुनी हुई सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे मुख्यमंत्री एनसीसीएसए में खुद को अल्पमत में पाते हैं.
इस मामले में अधिकारियों ने CM के आदेश को पलटा
29 जून को हुई एनसीसीएसए की बैठक में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लंबित ट्रांसफर.पोस्टिंग प्रस्तावों से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए. इन निर्देशों में शिक्षा विभाग से योग्य अधिकारियों को हटाने पर आपत्तियां और महिला अधिकारियों उनके वर्तमान पदों से ट्रांसफर को मंजूरी देना शामिल था. इसमें 11 महिला अधिकारियों ने सहानुभूति के आधार पर अपना ट्रांसफर का अनुरोध किया था. सीएम अरविंद केजरीवाल ने इन अनुरोधों का समर्थन करते हुए कहा था कि कामकाजी महिलाएं ऑफिस और घर दोनों जगह काम संभालती हैं. इसलिए उनके अनुरोधों पर सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाना चाहिए. उस दौरान बैठक में दोनों नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री के रूख का विरोध नहीं किया, लेकिन यह अफसोस की बात है कि बैठक में मिनट्स को अंतिम रूप देते समय मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव ने एकमत होकर मुख्यमंत्री के सभी निर्णयों को पलट दिया और अपने एजेंडे को आगे बढ़ा दिया.
CMO ने जताई इस बात की आशंका
11 महिला अधिकारियों को सहानुभूति के आधार पर उनके महत्वपूर्ण कारण होने के बावजूद ट्रांसफर से वंचित कर दिया. इसके अलावा, सभी योग्य अधिकारियों को शिक्षा विभाग से हटाया जा रहा है. इन योग्य अधिकारियों के हटाए जाने से शिक्षा विभाग में अब तक हुई प्रगति पर असर पड़ेगा. एकतरफा कार्रवाई के पीछे छिपे गंभीर उद्देश्यों को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती हैं. इससे ऐसा लगता है कि दिल्ली की शिक्षा क्रांति को रोकने और चुनी हुई सरकार के विकास कार्यों में बाधा डालने के मकसद से बहुत ही सावधानीपूर्ण और सुनियोजित योजना पर काम किया जा रहा है. एनसीसीएसए एक मजाक बन कर रह गई है जो मुख्यमंत्री की अध्यक्षता की आड़ में काम कर रही है. भले ही मुख्यमंत्री उन निर्णयों का समर्थन नहीं करते हों. उसी बैठक में मुख्यमंत्री ने कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज और राज कुमार आनंद द्वारा किए गए पोस्टिंग के अनुरोधों का प्रस्ताव भी प्राधिकरण के समक्ष रखा था. इस मामले में भी नौकरशाहों ने अपने बहुमत का फायदा उठाया और सीएम द्वारा रखे गए प्रस्तावों पर विचार करने से साफ इन्कार कर दिया.
19 मई से दिल्ली में लागू है अध्यादेश
बता दें कि 19 मई 2023 को केंद्र ने दिल्ली को लेकर एक अध्यादेश जारी किया था, जो 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को रद्द करता है. इसमें कहा गया है कि दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर अंतिम फैसला दिल्ली सरकार के बजाय उपराज्यपाल का है. अध्यादेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम 1991 में संशोधन के रूप में लाया गया है. इसके तहत दिल्ली में सेवारत अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया है. अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट देता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि प्रशासन की वास्तविक शक्ति राज्य की निर्वाचित सरकार में निहित है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि संवैधानिक और लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को अपने प्रशासन पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है.