Delhi News: दिल्ली सहित देश के ज्यादातर हिस्सों में इस वक्त कड़ाके की ठंड पड़ रही है. इस सर्दी में जहां लोग अपने घरों में रजाई के अंदर या हीटर के पास रहना चाह रहे हैं, वहीं दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने वाले दो वक्त की रोटी के लिए सुबह से ही रिक्शा लेकर सवारियों के इंतजार में सड़कों पर निकल जाते हैं. फिर दिन भर रिक्शा चलाने के बाद जब थक कर चूर हो जाते हैं, तो ये ठंड में ठिठुरते हुए फुटपाथों पर ही अपनी रात गुजारते हैं. द्वारका (Dwarka) सेक्टर 12 मेट्रो स्टेशन के पास भी ई-रिक्शा और रिक्शा चलाने वाले लोग इस कंपकंपा देने वाली ठंड में सवारी की इंतजार में सड़कों पर खड़े रहते हैं.


ये पेट की आग और परिवार की जरूरतों को पूरी करने की ही मजबूरी है, जिस कारण घने कोहरे के बीच ही तड़के सुबह से सड़कों पर रिक्शा वाले निकल आए हैं. एक रिक्शा चालक ने अपनी मजबूरी बयां करते हुए बताया कि वो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए रिक्शा चलाता है और इसके लिए उसने 400 रुपये प्रति दिन के किराए पर रिक्शा लिया है. पूरे दिन रिक्शा चलाने के बाद किराए के पैसे अदा करने के बाद जो पैसे बचते हैं, उसी से वो दो वक्त की रोटी और अन्य जरूरी सामानों की खरीदारी करता है.


ठंड रात में करती है ज्यादा परेशान
अगर वो किसी दिन रिक्शा नहीं चलाएगा, तो फिर वो रिक्शे का किराया तो नहीं ही भर पायेगा, ऊपर से उसके लिए परिवार वालों के लिए रोटी का इंतजाम करना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि इस ठंड में भी सुबह से ही रिक्शा चला कर कमाने के लिए रिक्शा चालक बाहर निकल आए हैं. इन रिक्शा चालकों की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती है, क्योंकि ये ठंड रात में इन्हें ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इनके पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है और जब थक कर ये वापस अपने ठिकाने यानी फुटपाथ पर पहुंचते हैं, तो दिल्ली की सर्दी में रात में ठिठुरते हुए किसी तरह रात काट कर सुबह का इंतजार करते हैं.


20 लोगों की होती है रैन बसेरों की क्षमता 
उन्होंने बताया कि आसपास दिल्ली सरकार ने रैन बसेरा तो बनाया है, लेकिन एक रैन बसेरा की क्षमता 20 लोगों तक की ही होती है, जिसके भर जाने के बाद वहां किसी और को आसरा नहीं मिलता है. अंत मे उनका ठिकाना फुटपाथ ही बनता है. ठंड बढ़ी है, लेकिन अभी तक समाजसेवियों और एनजीओ की नजरें भी शायद इनकी दिक्कतों तक नहीं पड़ी हैं, इसलिए इस बार अब तक कोई भी इन जैसे लोगों को कंबल भी देने नहीं आया, जिसे ओढ़ कर रातों को ये खुद को गर्म रख सकें.


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