Delhi Court: दिल्ली कोर्ट में तीस साल से चल रहे मुक़दमे को कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया. दरअसल यह एक सिविल सूट केस था. जिसे एक व्यक्ति ने अपने भाई के विधवा पर प्रॉपर्टी के उपयोग और हर्जाने के रूप में दायर किया था. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक यह केस 10 मई 1991 में दायर किया गया था. जिसमें वादी ने यह दावा किया था कि  महिला ने उसकी प्रॉपर्टी को बगैर किसी अनुज्ञापत्र कब्ज़ा कर लिया था.


इसलिए 1 मार्च 1989 से 30 अप्रैल 1991 तक, जिस दौरान महिला का प्रॉपर्टी पर अवैध कब्ज़ा रहा वह उसका मुआवजा पाने का हक़दार है. जिसके लिए व्यक्ति द्वारा 13 हज़ार रुपये की हर्जाना राशि की मांग की गयी थी.

वहीं महिला का कहना था कि वादी का प्रॉपर्टी पर दावा अनधिकृत और अवैध है. यह प्रॉपर्टी उसकी और उसके बच्चे की है. वहीं महिला ने आगे कहा कि वह इस एक कमरे के प्रॉपर्टी में अपने पूर अधिकार के साथ रह रही है. इस लिए व्यक्ति (वादी) के ज़रिये दायर किया गया हर्जाने का सिविल सूट मुकदमा गलत है.

न्यायलय का यह है कहना 

अपने 9 नवंबर के एक आदेश में एडिशनल सीनियर सिविल जज अजय कुमार मालिक ने कहा वादी के ज़रिये किये जा रहे दावे के सम्बन्ध उनको इसको साबित करने के लिए कई मौके दिए गए और गवाहों के बयानों को जांच करने के बाद भी कोई ठोस तथ्य साबित नहीं हुआ. वादी अपने द्वार किये जा रहे दावे को साबित में नाकाम रहा.


वहीं कोर्ट ने आगे कहा कि वादी के द्वार पेश सबूतों और गवाहों को सही ढंग से जाँच करने का मौका नहीं दिया गया.वहीं प्रतिवादी के भी कभी गवाहों से जिरह करने का मौका नहीं दिया गया.  बाद में कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुनते हुए कहा कि सबूतों के अभाव मुक़दमे को ख़ारिज कर दिया.


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