Delhi News: दिल्ली के एक शख्स ने मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले के खिलाफ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में याचिका दायर की थी. याची ने अदालत से गुजारिश की थी कि पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देने के  मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले पर रोक लगाई जाए, लेकिन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश याची की अपील को खारिज करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत अंतरिम भरण-पोषण के प्रावधान का इरादा अदालत को ऐसे निर्देश पारित करने का अधिकार देता है, जो वह उचित और ठीक समझे. बता दें कि मजिस्ट्रेट अदालत ने इस साल मार्च में महिला और उसके नाबालिग बच्चे को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था.


पति ने इस आधार पर खर्चा देने से किया था इनकार 


दरअसल, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल पाहुजा एक व्यक्ति की उस अपील पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें मजिस्ट्रेट के आदेश पर आपत्ति जताई गई थी. व्यक्ति ने दावा किया है कि वह प्रति माह 12,500 रुपये कमा रहा है, इसलिए वह अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं दे सकता. इस मामले में मजिस्ट्रेट अदालत ने व्यक्ति को अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे को 3,000 रुपये प्रतिमाह देने का निर्देश दिया था.


गुजरा भत्ता देना पति का कर्तव्य


अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल पाहुजा ने इस मामले की सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा, ‘‘अंतरिम भरण-पोषण के प्रावधान का आशय यह है कि कानून अदालत को ऐसे अंतरिम आदेश पारित करने का अधिकार देता है, जो वह उचित और ठीक समझे. घरेलू हिंसा के कारण पीड़ित व्यक्ति को वित्तीय संकट से बचाने और उसके भरण-पोषण के लिए मौद्रिक राहत प्रदान की जाती है.’’


न्यायाधीश विशाल पाहुजा ने आगे कहा कि अपीलकर्ता पति है, जिसका कर्तव्य अपनी पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण करने का है. इसलिए, उसकी आय को उसके और उसकी पत्नी तथा नाबालिग बच्चे के बीच विभाजित किया जाना चाहिए, जो इस मामले में उपयुक्त है.’’ सत्र अदालत भी मजिस्ट्रेट के इस निष्कर्ष से सहमत थी कि पति प्रति माह 12,500 रुपये से अधिक कमा रहा था और उसे अपनी पत्नी को बतौर गुजारा भत्ता 3 हजार रुपये देने चाहिए.


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