Delhi News: राजधानी दिल्ली में एक शख्स के उपर 31 साल पहले दो हजार रुपए रिश्वत लेने का दाग धुल गया है. दरअसल दिल्ली राज्य उद्योग विकास निगम (DSIDC) के तत्कालीन सहायक प्रबंधक आर. तिवारी पर 31 साल पहले दो हजार रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगा था. दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस अनु मल्होत्रा की पीठ ने 19 मई, 2001 को तीस हजारी की विशेष कोर्ट द्वारा सुनाए गए निर्णय को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को बरी करने का आदेश दिया. 


कोर्ट ने बरी किया
कोर्ट ने ये पाया कि अपीलकर्ता से रिश्वत की कोई राशि बरामद नहीं हुई थी. शिकायतकर्ता की कमीज से केमिकल पाउडर लगे नोटों को जब्त नहीं किया गया था. मामले में सह आरोपित आरके पांडेय (मृतक) ने भी कहा था कि उन्होंने शिकायतकर्ता से कोई रिश्वत नहीं मांगी. तथ्यों और पेश किए गए सबूतों को देखते हुए अपीलकर्ता आर. तिवारी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 और षड्यंत्र रचने का मामला नहीं बनता है. 


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हो चुकी है दो साल की सजा
याचिका के मुताबिक शिकायतकर्ता सतीश कुमार को खिचड़ीपुर में डीएसआइडीसी ने आठ जून, 1993 को वर्किंग शेड का आवंटन हुआ था. उनका आरोप था कि आर. तिवारी ने शेड का कब्जा देने के लिए दो हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी. उन्होंने यह राशि आरके पांडे को देने के लिए कहा था. इसे लेकर सतीश ने 10 जून, 1993 को सीबीआइ में शिकायत की. सीबीआइ ने सतीश के जरिए रिश्वत के मामले में आर. तिवारी को गिरफ्तार किया था. 2001 में तीस हजारी की विशेष कोर्ट ने तिवारी को दो साल की सजा सुनाते हुए पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया था. वहीं, आर तिवारी ने याचिका , में दावा किया था कि उन पर झूठा मामला दर्ज किया गया था.


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