दिल्ली HC बार चुनाव में इतिहास रचने की तैयारी, महिला वकीलों को मिला नेतृत्व का सुनहरा मौका
DHCBA Elections 2025: दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन चुनाव में पहली बार महिला वकील दावेदारी पेश कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महिला पद आरक्षित किया गया है.

Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (DHCBA) का चुनाव इस बार नया इतिहास लिखने जा रहा है. शुक्रवार को कार्यकारिणी समिति के चुनाव में पहली बार महिला वकील दावेदारी पेश कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महिला पद आरक्षित किया गया है. डीएचसीबीए का चुनाव लंबे समय से चली आ रही लैंगिक असमानता को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम है. सुप्रीम कोर्ट ने 19 दिसंबर 2024 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था.
डीएचसीबीए की कार्यकारिणी समिति के तीन महत्वपूर्ण पदों - कोषाध्यक्ष, सदस्य कार्यकारिणी (नामित वरिष्ठ अधिवक्ता) और सदस्य कार्यकारिणी (25 वर्ष की प्रैक्टिस वाले) - पर महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया. तीन महिला वकीलों, फौज़िया रहमान, अदिति चौधरी और शोभा गुप्ता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया. कोषाध्यक्ष पद की उम्मीदवार एडवोकेट ज़ेबा खैर का फोकस बार फंड के न्यायसंगत और समावेशी वितरण पर है.
दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का चुनाव
उन्होंने कहा कि कोषाध्यक्ष का चुनाव जीतने पर दिल्ली हाई कोर्ट के क्रेच (शिशु देखभाल केंद्र) का विस्तार करेंगी. मकसद महिला वकीलों को मातृत्व के दौरान पेशेवर दायित्व निभाने में आनेवाली कठिनाई को दूर करना है. ज़ेबा दिव्यांग वकीलों के लिए कोर्ट में बेहतर सुविधाएं और सुगम पहुंच की व्यवस्था को भी प्राथमिकता देना चाहती हैं. वहीं, सदस्य कार्यकारिणी पद की उम्मीदवार एडवोकेट नंदिता अब्रोल का एजेंडा महिला वकीलों के लिए बार रूम की सुविधाओं में सुधार और मातृत्व अवकाश के दौरान वित्तीय सहायता की मांग है.
महिला उम्मीदवारों के एजेंडे में ये मुद्दे शामिल
नंदिता ने कहा, "समय आ गया है कि महिला वकीलों को बराबरी का अधिकार दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़ा कदम है." डीएचसीबीए के चारों पुरुष प्रेसिडेंट उम्मीदवारों—कीर्ति उप्पल, अभिजात बाल, एन हरिहरन और विवेक सूद—ने भी महिलाओं के लिए आरक्षण का खुलकर समर्थन किया है. वरिष्ठ अधिवक्ताओ ने कहा पिछले 60 वर्षों में न तो कोई महिला अध्यक्ष बनी और न ही उपाध्यक्ष. आरक्षण लैंगिक असंतुलन को दूर करने की दिशा में बड़ी पहल है.
कीर्ति उप्पल ने कहा, "1986 में मैंने वकालत शुरू की थी. तब ये पेशा पूरी तरह पुरुष प्रधान था. महिलाओं की भागीदारी से कार्यकारिणी समिति में नए दृष्टिकोण और ऊर्जा का संचार होगा." इस बार चुनाव प्रचार में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. उम्मीदवार अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे इंस्टाग्राम, ट्विटर और व्हाट्सएप का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं. डिजिटल फ्लायर्स और प्रचार वीडियो की मदद से उम्मीदवार मतदाताओं तक पहुंच बना रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला डीएचसीबीए के इतिहास में महत्वपूर्ण है. चुनाव महिलाओं को नेतृत्व प्रदान करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है.
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