Delhi News: हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न में रिहा दोषी को सजा काटने के लिए फिर भेजा जेल, पढ़ें पूरी खबर
हाई कोर्ट ने कहा कि दोषी को जेल में बिताई गई नौ महीने और 26 दिन के समय के बाद रिहा करके निचली अदालत ने बड़ी गलती की. कोर्ट ने बाकी सजा काटने के लिए हिरासत तिहाड़ जेल अधीक्षक को सौंपने का निर्देश दिया.
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में दोषी व्यक्ति को एक बार फिर से जेल भेज दिया. इसे चार साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के लिए 2015 में एक निचली अदालत द्वारा दोषी तो ठहराया गया था लेकिन उसे परिवीक्षा (Probation) पर रिहा कर दिया गया था. हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने दोषी को जेल में बिताई गई नौ महीने और 26 दिन के समय के बाद रिहा करके बड़ी गलती की है.
निचली अदालत ने व्यक्ति को परिवीक्षा का लाभ देते हुए कहा था कि यह पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान के तहत उसका पहला अपराध है. इसके लिए अधिकतम पांच साल के कारावास की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. हालांकि, न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यूनतम पांच साल की जेल और अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है.
पॉस्को के तहत सजा और जुर्माने का प्रावधान
बेंच ने कहा, "यह स्पष्ट है कि विशेष अदालत ने इस मौलिक तथ्य पर गौर करने में बड़ी गलती की है कि, पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत दोषी को जुर्माने के साथ अधिकतम पांच साल के कारावास की सजा होती है. जबकि पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यूनतम सजा पांच साल और जुर्माना अधिकतम सात साल कैद की सजा और जुर्माने का प्रावधान है."
पीड़िता के बयान का अध्यन
हाई कोर्ट ने यह फैसला सरकार द्वारा दायर एक अपील स्वीकार करते हुए दिया, जिसमें निचली अदालत द्वारा दोषी को परिवीक्षा पर रिहा करने के फरवरी 2015 के फैसले को चुनौती दी गई थी. शख्स को बच्ची के किडनैपिंग और यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया था. हालांकि, उक्त व्यक्ति ने अपनी सजा को चुनौती नहीं दी है. हाई कोर्ट के न्यायाधीशों ने खुद की संतुष्टि के लिए पीड़िता के बयान का अध्ययन किया, जो कथित घटना के समय चार साल की थी. यह घटना अब साबित भी हो गई है.
25,000 रुपये का जुर्माना
बच्ची ने अपनी गवाही में घटना का विवरण दिया और निचली अदालत में मौजूद व्यक्ति की पहचान भी की. बेंच ने कहा, इस तथ्य के मद्देनजर कि प्रतिवादी (व्यक्ति) को परिवार की देखभाल करनी है और वह 11 फरवरी 2015 से किसी अन्य अपराध में लिप्त नहीं हुआ है. प्रतिवादी द्वारा पहले से काटी गई सजा को पांच साल के कठोर कारावास में समायोजित किया जाता है और 25,000 रुपये का जुर्माना भी किया जाता है.
हाई कोर्ट ने पुलिसकर्मियों से क्या कहा?
विशेष अदालत के निर्देशानुसार, सचिव, डीएलएसए, उत्तर-पश्चिम जिला द्वारा भुगतान की जाने वाली 50,000 रुपये की मुआवजे राशि में कोई अंतर नहीं होगा. हाई कोर्ट ने पुलिसकर्मियों से कहा कि वे अदालत में मौजूद दोषी को बाकी सजा काटने के लिए उसकी हिरासत तिहाड़ जेल अधीक्षक को सौंप दें.