Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि कोई आरोपपत्र वैध ही माना जाएगा, भले ही अभियोजन पक्ष की ओर से उसके साथ दस्तावेज दाखिल न किए जाएं. जस्टिस अनूप कुमार मेदीरत्ता ने कहा, "हालांकि सभी दस्तावेजों को आरोपपत्र के साथ संलग्न करना बेहतर है, लेकिन उसके न रहने की स्थिति में इसे अमान्य नहीं किया जा सकता."
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत संबंधित मामले आगे की जांच करने का जांच अधिकारी काे अधिकार है. मगर समझौता इसलिए नहीं किया जाता, क्योंकि आरोपी के खिलाफ संहिता की धारा 173(2) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया गया है. आरोपपत्र में कहा गया है कि अगर अदालत आरोपपत्र के साथ पेश किए गए सबूतों से संतुष्ट हैं और अपराध का संज्ञान लेती है, तो आगे की जांच लंबित होने या कुछ दस्तावेजों के अभाव से आरोपपत्र की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता.
याचिका खारिज
हाईकोर्ट के जस्टिस मेदीरत्ता ने धोखाधड़ी के एक मामले में वैधानिक जमानत की मांग करने वाले एक आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें तर्क दिया गया कि अधूरा आरोपपत्र जमानत देने का आधार होना चाहिए. आरोपी ने दावा किया कि अदालत के समक्ष अनुरोध दायर करने के बावजूद जांच अधिकारी द्वारा कुछ मूल दस्तावेज अभी तक एकत्र नहीं किए गए हैं.
आरोपी जमानत का हकदार नहीं
आरोपी इस तर्क आधारहीन मानते हुए जस्टिस मेदीरत्ता ने कहा कि आरोपपत्र निर्धारित 90-दिन की अवधि के भीतर दायर किया गया था और अदालत द्वारा अपराधों का संज्ञान लिया गया था. इसमें कहा गया है कि कुछ दस्तावेजों के अभाव या आगे की जांच लंबित होने से आरोपी सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार नहीं है.