Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने आतंकवाद के मामले में एक आरोपी की याचिका खारिज करते हुए अहम टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि निर्दोष युवाओं को गुमराह करने और उन्हें देश के खिलाफ अवैध गतिविधियों के लिए भड़काने वाले भाषणों को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कोई विशिष्ट आतंकवादी कृत्य नहीं किया गया.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने भारत में अलकायदा के कथित सहयोगी मोहम्मद अब्दुल रहमान की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. रहमान ने आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के तहत निचली अदालत द्वारा उसे दोषी ठहराए जाने और सात साल पांच महीने की जेल की सजा सुनाए जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी.
याचिकाकर्ता ने क्या दलील दी थी?
हाई कोर्ट की बेंच ने कहा, ''निर्दोष युवाओं को गुमराह करने के लिए दिए गए भाषणों और देश के खिलाफ गैरकानूनी, अवैध कार्य करने के लिए उन्हें भर्ती करने के प्रयासों को इस आधार पर पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता कि कोई विशिष्ट आतंकवादी कृत्य नहीं किया गया.'' याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उसे आतंकवादी गतिविधियों की तैयारी में संलिप्त होने और आतंकवादी कृत्य के लिए लोगों की भर्ती करने का दोषी ठहराया गया, लेकिन यह दर्शाने के लिए कोई सूबत नहीं है कि उसने ऐसे काम किए थे.
आतंकवादी कृत्य की परिभाषा काफी व्यापक- हाई कोर्ट
हालांकि, बेंच ने कहा कि आतंकवादी कृत्य की परिभाषा काफी व्यापक है, जिसमें ‘‘आतंकवादी संगठनों के साथ साजिश में शामिल होना और आतंकवादी संगठनों को सहयोग देने वाले लोगों से जुड़ना’’ शामिल है, जबकि प्रावधानों के तहत सजा के लिए किसी खास आतंकवादी कृत्य की पहचान या मौजूदगी की जरूरत नहीं है.’’
पाकिस्तान स्थित संगठनों के साथ संबंध का आरोप
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि साक्ष्यों से यह पता चलता है कि वह अन्य आरोपियों के संपर्क में था, जो एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा थे. आरोप लगाया गया कि यह नेटवर्क भड़काऊ भाषण देता है, सामग्री प्रसारित करता है, पाकिस्तान स्थित संगठनों के साथ संबंध रखता है और गुप्त बैठकों के लिए वहां जाता है. इस पर आतंकवादी कृत्यों के लिए लोगों की भर्ती करने, ऐसी यात्राओं में मदद के लिए धन इकट्ठा करने और अन्य गतिविधियों के अलावा देश और उसके राजनीतिक नेताओं के खिलाफ नफरत फैलाने का भी आरोप है.
अदालत ने कहा कि आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने की साजिश कई वर्षों तक चल सकती है और गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (UAPA) की धारा 18 का उद्देश्य ऐसी तैयारी से निपटना है, भले ही किसी विशिष्ट आतंकवादी कृत्य की पहचान न हुई हो. बेंच ने कहा कि यह 'सामान्य ज्ञान' है कि भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठन बेहद गुप्त तरीके से काम करते हैं और इसके सहयोगी अक्सर कोई सबूत नहीं छोड़ते हैं.
फरवरी 2023 में, निचली अदालत ने याचिकार्ता और अन्य आरोपियों को ऐसे कृत्यों को अंजाम देने की साजिश के लिए दोषी ठहराया, जो किसी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने की तैयारी का हिस्सा थे. निचली अदालत ने पाकिस्तान की उनकी अवैध यात्रा, भड़काऊ भाषण, झूठे और मनगढ़ंत दस्तावेज बनाकर हासिल किए गए विभिन्न पासपोर्ट जैसे उन सबूतों पर विचार किया जो आतंकवादी कृत्य की साजिश का संकेत देते थे.
ये भी पढ़ें: 'पूर्व मुख्यमंत्री ने आपको अस्थाई CM कहा, ये अपमान है', LG ने आतिशी को लिखी चिट्ठी