Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि 1998 में जिम्बाब्वे से भारत को बतौर उपहार में मिला एक अफ्रीकी नर हाथी वापस नहीं भेजा जाएगा और यहां उसकी उचित देखभाल की जाएगी. इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को एक मादा दक्षिण अफ्रीकी हाथी आयात करने की संभावना की तलाश करने को कहा.
कोर्ट ने विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) तथा भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) को दिल्ली चिड़ियाघर में रखे गए हाथी के संबंध में संयुक्त निरीक्षण करने का निर्देश दिया. अदालत ने जानवर और जहां उसे रखा गया है, के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया. कोर्ट ने अफ्रीकी हाथी शंकर की रिहाई और पुनर्वास के अनुरोध वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिम्बाब्वे सरकार ने भारत को शंकर हाथी उपहार में दिया था और उसे यहां राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में जंजीर से बांधकर रखा गया है.
हाथी हमारा है, हम देखभाल करेंगे- कोर्ट
पीठ ने कहा कि वह स्पष्ट कर रही है कि हाथी को वापस भेजने की अनुमति नहीं दी जाएगी. चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम इसकी अनुमति नहीं देंगे. हम इसे भारत में रखेंगे और यहीं उसकी देखभाल करेंगे. वह हमारा है. हम उसकी उचित देखभाल करेंगे, चिंता नहीं करें.' कोर्ट ने सीजेडए और एडब्ल्यूबीआई से कहा कि वे हाथी को किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में रखे जाने की संभावना का हलफनामे में उल्लेख करें. अब इस मामले में अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी.
हाथी के साथ हो रहा क्रूर व्यवहार
सीजेडए के वकील ने कोर्ट में कहा कि हाथी पिछले 24 वर्षों से भारत में है और उसे 1998 में यहां लाया गया था. कोर्ट ने कहा, "प्रतिवादी सीजेडए के वकील उसी उम्र की एक मादा दक्षिण अफ्रीकी हाथी आयात किए जाने की संभावना तलाशेंगे." वहीं 'यूथ फॉर एनिमल्स' की संस्थापक निकिता धवन (16) द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि शंकर नाम के अफ्रीकी हाथी के साथ चिड़ियाघर में कर्मचारियों द्वारा क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है और उसकी मौजूदा स्थिति अवैध कारावास से कम नहीं है.