Delhi: 'व्यभिचार सबूतों के साथ साबित होने पर आरोप मानेंगे सही', पति की याचिका पर दिल्ली HC का जवाब
Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने पति से कहा कि डीपफेक तकनीक के जरिए शब्दों और कार्यों को बदलकर दर्शकों को हेरफेर और गुमराह किया जा सकता है. ऐसे में आरोपों को साबित करना पति के लिए जरूरी है.
Delhi High Court News: दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी के खिलाफ पति की याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि केवल आरोप लगाने से उसे सही नहीं माना जा सकता. डीपफेक के जमाने में गंभीर आरोप लगाना आसान हो गया है. ऐसे में आरोपों को सबूतों के आधार पर साबित होने के बाद ही उसे सही माना जा सकता है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने ये जवाब उस समय दिया जब पति ने अदालत के सामने कुछ तस्वीर पेश करते हुए पत्नी पर अलग रहने और व्यभिचार का आरोप लगाया. साथ ही पत्नी और नाबालिग बेटी को 75 हजार रुपये भरण पोषण देने से भी इनकार किया. पति ने अदालत के सामने यह दलील दी थी कि उसकी पत्नी अलग रह रही है और व्यभिचार में लिप्त है.
पति की याचिका खारिज
इसके जवाब में अदालत ने कहा कि तस्वीरों को पारिवारिक अदालत के समक्ष साक्ष्य के रूप में साबित करना होगा. फिलहाल, दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बेटी को 75,000 रुपये का भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था.
पति के वकील ने जब अदालत का ध्यान अपनी पत्नी की कुछ तस्वीरों की ओर आकर्षित किया तो जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस अमित बंसल की पीठ ने कहा, 'यह स्पष्ट नहीं है कि पत्नी तस्वीरों में दिख रहा व्यक्ति है या नहीं, जैसा कि पति के वकील ने कहा है। दो जजों की पीठ ने कहा कि हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान ले सकते हैं कि हम डीपफेक के युग में रह रहे हैं और इसलिए यह एक ऐसा पहलू है जिसे पति को शायद पारिवारिक अदालत के समक्ष साक्ष्य के रूप में साबित करना होगा.
पति को करना होगा ये काम
डीपफेक तकनीक के जरिए शब्दों और कार्यों को बदलकर दर्शकों को हेरफेर और गुमराह किया जा सकता है. पीठ द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या व्यभिचार के इस कथन का हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पत्नी की याचिका पर पति के जवाब में उल्लेख मिला है, पुरुष के वकील ने माना कि जवाब में इस पहलू का कोई उल्लेख नहीं है. इस पर पीठ ने कहा कि चूंकि पति द्वारा तलाक के लिए दायर याचिका पर निर्णय लंबित है, अगर इस मुद्दे पर जोर दिया जाता है, तो अदालत पक्षों को अपने-अपने मामलों के समर्थन में अपने साक्ष्य रिकॉर्ड पर रखने का अवसर दे सकती है. पति को परिवारिक न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करना होगा.