दिल्ली HC ने CBDT के आदेश को खारिज किया, NOIDA से जुड़ा है ये मामला
Dehi High Court News: जज यशवंत वर्मा और पुरुषेंद्र कुमार कौरव की बेंच ने कहा कि बोर्ड ने यह मानकर गलती की है कि 'नोएडा' की तरफ से दिये गये कर्ज और अग्रिम कमर्शियल गतिविधियों के दायरे में आते हैं.
Dehi High Court Rejected Order of CBDT: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के आदेश को खारिज कर दिया है. सीबीडीटी ने अपने आदेश में न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (NOIDA) को अलग-अलग संस्थाओं को दिए गए कर्ज से हुई ‘आय’ के कारण टैक्स देनदारी से छूट देने से इनकार कर दिया था.
जज यशवंत वर्मा और पुरुषेंद्र कुमार कौरव की बेंच ने कहा कि बोर्ड ने यह मानकर गलती की है कि 'नोएडा' की तरफ से दिये गये कर्ज और अग्रिम कमर्शियल गतिविधियों के दायरे में आते हैं. बेंच ने अथॉरिटी को छूट अनुरोध पर कदम उठाने का निर्देश दिया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा?
अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास (यूपीआईएडी) अधिनियम के तहत गठित नोएडा अपने नियंत्रण में रखे गये क्षेत्रों के नियोजित विकास के लिए सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करता है. इसे संभवतः लाभ या व्यावसायिक उद्देश्य के लिए गठित निगम के रूप में नहीं देखा जा सकता है.
पीठ ने 11 जुलाई को पारित अपने फैसले में कहा, ''हम तत्काल रिट याचिका की अनुमति देते हैं और 24 दिसंबर, 2020 के आदेश को रद्द करते हैं. परिणामस्वरूप, प्रतिवादियों को कानून की धारा 10 (46) के तहत याचिकाकर्ता के छूट के आवेदन पर की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है.''
सीबीडीटी ने अधिनियम की धारा 10(46) के तहत नोएडा को उचित प्रमाणीकरण देने से इनकार कर दिया था. उसका कहना था कि कर्ज का विस्तार जनता के लाभ के अलावा अन्य गतिविधियां लगती है. इस आधार पर उचित प्रमाणीकरण देने से इनकार कर दिया. आयकर कानून की धारा 10(46) सीबीडीटी को एक उस सांविधिक निकाय की निर्दिष्ट आय को प्रमाणित करने का अधिकार देता है.
इसका गठन आम जनता के लाभ के लिए गतिविधियों को विनियमित करने और प्रशासित करने के उद्देश्य से किया गया है. साथ ही जिन संस्थानों को कराधान से छूट दी गयी है, वे किसी भी व्यावसायिक गतिविधि में शामिल नहीं है. सीबीडीटी के आदेश के अनुसार, नोएडा ने निजी पक्षों सहित विभिन्न संस्थाओं को 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया था. इसका इसके सांविधिक उद्देश्य से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं था.
इसके कारण आकलन वर्ष 2018-19 में 793 करोड़ रुपये और आकलन वर्ष 2017-18 में 350 करोड़ रुपये की ब्याज आय हुई. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये कर्ज लाभ के लिए नहीं दिये गये थे. उनमें से कुछ को विकास गतिविधियों से सबंद्ध वित्त कार्यों के लिए दिया गया था. पीठ ने कहा, ''यूपीआईएडी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता मुख्य रूप से सरकार के एक एजेंट के रूप में कार्य करता है.
यह अपने नियंत्रण में रखे गए क्षेत्रों के नियोजित विकास के लिए बाध्य है. इसे संभवतः एक निगम के रूप में नहीं देखा जा सकता है, जिसका गठन लाभ या व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किया गया है.''
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