Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जबरन धर्मांतरण के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी भी धर्म को चुनने और मानने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि यह एक संवैधानिक अधिकार है. न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, "अगर किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है तो यह एक अलग मुद्दा है लेकिन धर्मांतरण करना एक व्यक्ति का विशेषाधिकार है."


की गई थी ये मांग


पीठ बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें केंद्र और दिल्ली सरकार को धमकी, धोखे, या 'काले जादू और अंधविश्वास का उपयोग करके' धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता से उसकी याचिका का आधार पूछते हुए सवाल किया. बेंच ने कहा, "आपने सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले दिए हैं और बाकी आपका फैसला है."


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जनहित याचिका में दिया गया ये तर्क


जब पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा कथित सामूहिक धर्मांतरण पर डेटा मांगा तो उन्होंने कहा कि उनके पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से डेटा है. इस पर अदालत ने जवाब दिया, "सोशल मीडिया डेटा नहीं है. इसमें छेड़छाड़ की जा सकती है. 20 साल पहले की गई चीजों को कल की तरह दिखाया जाता है." जनहित याचिका में उपाध्याय ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है और कानून के समान संरक्षण को सुरक्षित करता है.


वर्तमान में उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से डराना, धमकाना और धोखा देकर धर्म परिवर्तन करना उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में अपराध है, लेकिन उससे सटे पूर्वी दिल्ली में नहीं. इसी तरह गुरुग्राम में काला जादू और अंधविश्वास का इस्तेमाल कर धर्मांतरण करना अपराध है लेकिन उससे सटे पश्चिमी दिल्ली में नहीं. उन्होंने दावा किया कि यह न केवल अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है बल्कि धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों के भी विपरीत है जो संविधान की मूल संरचना है.


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